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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 214 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश जब क्षात्र तेज के साथ ब्रह्मतेज मिल जाता है, तब वह वैसा ही बलशाली हो जाता है, जैसे वायु का सहारा पाकर अग्नि । उदधेरिव रत्नानि तेजांसीव विवस्वतः । 10 / 30 जैसे समुद्र के रत्न और सूर्य की किरणें गिनी नहीं जा सकती। ते प्रजानां प्रजानाथास्तेजसा प्रश्रयेण च । 10/83 उन प्रजा के स्वामी राजकुमारों ने अपने तेज और नम्र व्यवहार से अपनी प्रजा का । तेजसः सपदि राशिरुत्थितः प्रादुरास किल वाहिनी मुखे । 11 /63 इसी बीच अचानक एक ऐसा प्रकाश का पुंज सेना के आगे उठता दिखाई दिया, जिसे देखकर सब सैनिकों की आँखें चुंधिया गईं । तावुभावपि परस्परस्थितौ वर्धमान परिहीन तेजसा । 11/82 आमने सामने खड़े हुए राम और परशुराम में से एक का तेज बढ़ गया और दूसरे का घट गया । अवेक्ष्य रामं ते तस्मिन्न प्रजहुः स्वतेजसा । 15/3 वे तपस्वी यदि चाहते, तो अपने तेज से लवणासुर को भस्म कर डालते । तेजोमहिम्ना पुनरावृतात्मा तद्वयाप चामीकर पिञ्जरेण । 18/40 पर उनके शरीर से जो स्वर्ण के समान तेज निकलता था, उससे वह सिंहासन भरा सा ही जान पड़ता था । 4. दीप्ति (स्त्री० ) [ दीप् + क्तिन्] उजाला, चमक, प्रभा, आभा । हुतहुताशन दीप्ति वनश्रियः प्रतिनिधिः कनकाभरणस्ययत्। 9/40 हवन की अग्नि के समान चमकते हुए कनैर के फूल, वनलक्ष्मी के कर्णफूल जैसे जान पड़ते थे। 5. द्युति :- ( स्त्री० ) [द्युत + इनि] दीप्ति, उजाला, कान्ति, सौन्दर्य | ततो निषंगाद समग्र मुद्धृतं सुवर्ण पंखद्युति रंजितांगुलिम् । 3/64 रघु ने तूणीर से आधे निकाले हुए उस बाण को फिर से उसमें डाल दिया, जिसके सुनहरे पंख की चमक से उनकी उँगलियों के नख भी चमक उठे । दशरश्मिशतोपमद्युतिं यशसा दिक्षु दशस्वपि श्रुतम् । 8/29 जो दस सौ किरणों वाले सूर्य के समान तेजस्वी थे, जिनका यश दसों दिशाओं में फैला था । For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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