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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 208 कालिदास पर्याय कोश वह विमान आकाश से नीचे उतर आया और भरत जी के पीछे चलने वाली सारी जनता आँख फाड़-फाड़ कर उन्हें देखने लगी। इत्थं जनित रागासु प्रकृतिष्वनुवासरम्। 17/44 इस प्रकार प्रजा उनसे दिन पर दिन अधिक प्रेम करने लगी। अनाथदीनाः प्रकृतीरवेक्ष्य साकेतनाथं विधिवच्चकार। 18/36 प्रजा की दीन दशा देखकर सर्वसम्मति से उनके इकलौते पुत्र सुदर्शन को विधिपूर्वक साकेत का स्वामी बना दिया। 6. प्रजा :-[प्र+जन्+ड टाप्] सन्तान, प्रजा, सन्तति, बच्चे। न व्यतीयुः प्रजास्तस्य नियन्तुर्नेभिवृत्तयः। 1/17 वैसे ही राजा ने ऐसे अच्छे ढंग से प्रजा की देखभाल की थी कि प्रजा का कोई भी व्यक्ति मनु के बताए हुए नियमों से बहककर चलने का साहस नहीं कर सकता था। प्रजानामेव भूत्यर्थं सताभ्यो बलिमग्रहीत्। 1/18 वैसे ही राजा दिलीप भी अपनी प्रजा से जितना कर लेते थे, वह सब प्रजा की भलाई में ही लगा देते थे। प्रजानां विनया धानादक्षणान्परिणेतुः प्रसूतये। 1/24 राजा दिलीप भी अपनी प्रजा को बुरे मार्ग पर जाने से रोकते थे, अच्छा काम करने को उत्साहित करते थे, विपत्तियों से उनकी रक्षा करते थे और उनके लिए अन्न, वस्त्र, धन तथा शिक्षा का प्रबंध करके उनका पालन-पोषण करते थे। तमाहितौत्सुक्यम् दर्शनेन प्रजाः प्रजार्थव्रतः कर्शितांगम्। 2/73 राजा को अयोध्या से गए बहुत दिन हो गए थे, इसलिए प्रजा उनके दर्शन के लिए तरस रही थी, पुत्र की उत्पत्ति के लिए जो उन्होंने व्रत लिया था, उससे वे कुछ दुबले हो गए थे। ततः प्रजानां चिरमात्मना धृतां नितान्तगुर्वी लघयिष्यता रघुम्। 3/35 जब राजा दिलीप ने देखा कि रघु भली-भाँति राज्य संभाल सकते हैं, तब उन्होंने सोचा कि बहुत दिनों से जो राज्य मैं चला रहा हूँ, उसे रघु को क्यों न सौंप दूँ। नवाभ्युत्थान दर्शिन्यो ननन्दुः सप्रजाः प्रजाः। 4/3 जब राजा रघु अपने ऊंचे सिंहासन पर बैठते थे, तब उनकी प्रजा के सब बूढ़े-बच्चे उनकी ओर आँख उठाकर देखते हुए वैसे ही प्रसन्न होते थे। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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