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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 10 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश प्रत्यग्रहीदग्रजशासनं तदाज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया । 14 / 46 इसलिए उन्होंने पिता के समान राम की आज्ञा सिर चढ़ा ली, क्योंकि बड़ों की आज्ञा में मीन मेख निकालना ठीक नहीं है। विडौजषा विष्णुरिवाग्रजेन भ्रात्रा यदित्थं परवानसि त्वम् | 14 / 9 जैसे इन्द्र के छोटे भाई विष्णु सदा अपने बड़े भाई की आज्ञा मानते हैं, वैसे ही तुम बड़े भाई की आज्ञा मानने वाले हो । शशंस सीता परिदेवनान्तमनुष्ठितं शासनमग्रजाय । 14 / 83 सीताजी ने रो-रोकर जो बातें कहीं थीं, वे सब लक्ष्मण जी ने यह सोचकर राम से कह दीं कि । तमभ्यनन्दत्प्रणतं लवणान्तकमग्रजः । 15/40 जब लवणासुर को मारने वाले शत्रुघ्न जी उन्हें प्रणाम करने को झुके, तब राम ने भी उनका अभिनंदन किया। 2. प्रथमज :- [ प्रथ्+अमच्+ज ] सबसे पहले पैदा हुआ। स हि प्रथमजे तस्मिन्नकृत श्री परिग्रहे । 12/16 जिस राज्य को बड़े भाई ने स्वीकार नहीं किया, उसे लेना मैं उतना ही बड़ा पाप समझता हूँ। अद्रिराज 1. अद्रिराज : - [ अद्+क्रिन्+राज] आद्रि, पहाड़ राज, हिमालय । आभाति बालात परक्त सानुः सनिर्झरोद्गार इवाद्रिराज: 16/60 इस वेश में ये उस हिमालय के शिखर के समान सुन्दर लग रहे हैं, जो प्रात:काल धूप में लाल हो गया हो और जिस पर से अनेक पानी के झरने गिर रहे हों । 2. गौरीगुरू :- [ गौर ङीष् + गुरुः] हिमालय पहाड़ । गंगा प्रपातांतविरूढशष्पं गौरी गुरोर्गह्वरमाविवेश । 2 / 26 वह झट हिमालय की उस गुफा में बैठ गई, जिसमें गंगाजी की धारा गिर रही थी और जिसके तट पर घनी हरी-भरी घास खड़ी हुई थी । For Private And Personal Use Only ततो गौरी गुरुं शैलमारुरोहाश्वसाधनः । 4 / 71 अपने घोड़ों की टापों से उठी धूल से हिमालय की चोटियों को और भी ऊँची करना चाहते I
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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