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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रघुवंश www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 193 गुणवत्सुतरोपितश्रियः परिणामे हि दिलीपवंशजाः । 8/11 दिलीप वंश में जितने राजा हुए, वे बुढ़ापे में सब राज-काज अपने गुणवान पुत्र को सौंपकर | तमरण्यसमाश्रयोन्मुखं शिरसा वेष्टनशोभिना सुतः । 8 / 12 जब राजा रघु जंगल में जाने को उद्यत हुए, तब पुत्र अज ने मनोहर पगड़ी वाला अपना सिर । प्रथमा बहुरत्नसूरभूदपरा वीरमजीजनत्सुतम् । 8 / 28 बदले में पृथ्वी ने बहुत से रत्न उत्पन्न किए और इन्दुमती ने वीर पुत्र को जन्म दिया । निववृते स महार्णवरोधसः सचिवकारित बाल सुताञ्जलीन्। 9/14 उन देशों के मंत्रियों ने उन राजपुत्रों को दशरथ के आगे हाथ जोड़कर खड़ा कर दिया और राजा दशरथ उस महासमुद्र के तट से वापस लौट आए। तस्मै द्विजेतरतपस्वितसुतं स्खलद्भिरात्मानमक्षर पदैः कथयांबभूव 19/76 तब उसने लड़खड़ाती वाणी से बताया कि मैं ब्राह्मण पुत्र नहीं हूँ, मेरे पिता वैश्य हैं और मेरी माता शूद्रा हैं । सुताभिधानं स ज्योतिः सद्यः शोकतमोपहम् । 10 / 2 शोक के अंधेरे को दूर करने वाली वह ज्योति उन्हें नहीं मिल सकी, जिसे पुत्र कहते हैं। तेन शैल गुरुमप्यपातयत्पांडुपत्रमिव ताडका सुतम् । 11/28 पर्वत से भी बड़े ताड़का के पुत्र मारीच को सूखे पत्ते के समान दूर फेंक दिया (उड़ा दिया) । द्वितीयेन सुतस्यैच्छ्द्वैधव्यैकफलां श्रियम्। 12/6 दूसरा यह कि मेरे बेटे भरत को राज्य मिले, पर इस वर माँगने का एक मात्र फल यही निकला कि कैकेयी विधवा हो गई। For Private And Personal Use Only विस्पष्टमस्त्रान्धतया न दृष्टौ ज्ञातौ सुतस्पर्श सुखोपलम्भात्। 14/2 अपने पुत्रों को देखते ही दोनों माताओं की आँखों में आँसू छलछला आए, इसलिए वे आँख भर उन्हें देख भी नहीं सकीं; पर पुत्रों को प्यार से पुचकारते समय उन्हें पहचान गईं। सुतासूत संपन्नौ कोशदण्डाविव क्षितिः । 15/13
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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