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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 178 कालिदास पर्याय कोश स राज्यं गुरुणा दत्तं प्रतिपद्याधिकं बभौ। 4/1 वैसे ही अपने पिता से राज्य पाकर रघु और भी अधिक तेजस्वी हो गए। दशपूर्वरथं यमाख्यया दशकंठारि गुरुं विदुर्बुधाः। 8/29 जो उस राम के पिता थे, जिन्होंने दस शिर वाले रावण को मारा था और जिन्हें पंडित लोग दशरथ कहते हैं। मेने पराय॑मात्मानं गुरुत्वने जगद्गुरौः। 10/64 अब संसार में मुझसे बढ़कर कोई नहीं है, क्योंकि मैं संसार के गुरु विष्णुजी का भी पिता बन रहा हूँ। नामधेयं गुरुश्चक्रे जगत्प्रथम मंगलम्। 10/67 वशिष्ठजी ने उनका संसार में सबसे अधिक मंगलकारी नाम। गुणैराराधयामासुस्ते गुरुं गुरुवत्सलाः। 10/85 चारों पितृभक्त राजकुमारों ने पिता राजा दशरथ को अपने गुणों से उसी प्रकार प्रसन्न कर लिया। हित्वा तनुं कारण मानुषीं तां यथा गुरुस्ते परमात्ममूर्तिम्। 16/22 जैसे तुम्हारे पिता राम ने राक्षसों को मारने के लिए जो मनुष्य शरीर धारण किया था, उसे छोड़कर परमात्मा में पहुंच गए हैं। 2. तात :-पिता, जनक। हा तातेति क्रन्दित मा कर्ण्य विषण्णस्तस्यान्विष्यवेत संगूढं प्रभवं सः। 9/75 सहसा कोई चिल्लाया :-हाय पिता ! यह सुनकर इनका माथा ठनका और वे उसे ढूँढ़ने चले। 3. पिता :-[पाति रक्षति- पा+तृच्] पिता। स पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः। 1/24 वे ही अपनी प्रजा के सच्चे पिता थे, पिता कहलाने वाले अन्य लोग केवल जन्म देने भर के पिता थे। अविघ्नमस्तु ते स्थेयाः पितेव धुरि पुत्रिणाम्। 1/91 ईश्वर करे तुम्हें कोई बाधा नहीं हो और जिस प्रकार तुम अपने पिता के योग्य पुत्र हो, वैसे ही तुम्हें भी सुयोग्य पुत्र प्राप्त हो। जीवन्पुनः शश्वदुप्लवेभ्यः प्रजाः प्रजानाथ पितेव पासि। 2/48 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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