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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 170 कालिदास पर्याय कोश अरमत मधुराणि तत्र शृण्वन्विहगविकूजितबन्दिमंगलानि। 9/71 उस समय वन के पक्षी चारणों के समान जो मंगल गीत गाते थे, उन्हें सुनकर ही ये मगन हो जाते थे। 7. श्येन :-[श्यै+इनन्] बाज, शिकरा। हृतान्यपि श्यान नखान कोटिव्यासक्त केशानि चिरेण पेतुः। 7/46 वे सिर पृथ्वी पर देर से गिरते थे, क्योंकि उनके लंबे-लंबे बाल बाजों के नखों में उलझने से बहुत देर तक ऊपर ही टंगे रह जाते थे। पद्म 1. अब्ज :-[अप्सु जायते-अप्+जन्+ड] कमल। बालातपमिवाब्जानामकालजले दोदयः। 4/61 जैसे असमय में उठे हुए बादलों से प्रात: की धूप में खिले हुए कमलों की चमक जाती रहती है। 2. अम्बुरुह :-[अम्ब्+उण्+रुहः] कमल। नाभिप्ररूढारुहासनेन संस्तूयमानः प्रथमेन धात्रा। 13/6 इनकी नाभि से निकले हुए कमल से उत्पन्न होने वाले ब्रह्माजी, सदा इनके गुण गाया करते हैं। 3. अम्भोज :-[आप् (अम्भ)+असुन्+जम्] कमल। सैकताम्भोजबलिना जाह्नवीव शरत्कृशा। 10/69 जैसे शरदऋतु में पतली धार वाली गंगाजी के तट पर किसी का चढ़ाया हुआ नील कमल रक्खा हुआ हो। 4. अरविन्द :-[अरान् चक्राङ्गनीव पत्राणि विन्दते :-अर+विन्द+श] कमल। सरसीष्वरविन्दानां वीचिविक्षोभशीतलम्। 1/43 मार्ग में जो ताल पड़ते थे, उनकी लहरों की झकोरों से उड़ती हुई कमलों की ठंडी सुगंध लेते हुए वे चले जा रहे थे। रजोभिरन्तः परिवेषबन्धि लीलारविन्दं भ्रमयांचकार। 6/13 पराग के फैलने से कमल के भीतर चारों ओर एक कुंडली सी बन गई। दिवाकरादर्शनबद्धकोशे नक्षत्रनाथांशुरिवारविन्दे। 6/66 जैसे सूर्य के न दिखाई देने पर बन्द कमल के भीतर चन्द्रमाकी किरणें नहीं पहुँच पातीं। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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