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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 162 कालिदास पर्याय कोश उनकी सरल चितवन को राजा दिलीप और रानी सुदक्षिणा ने एक दूसरे के नेत्रों के समान समझा। विलोकयन्त्यो वपुरापुरक्ष्णां प्रकामविस्तार फलं हरिण्यः। 2/11 हरिणियाँ राजा दिलीप के सुंदर शरीर को देखती रह गईं, मानो नेत्रों के बड़े होने का उन्हें सच्चा फल प्राप्त हो गया है। धेन्वा तदध्यासितकातराक्ष्या निरीक्ष्यमाणः सुतरां दयालुः। 2/52 गाय कातर नेत्रों से रक्षा की भीख माँग रही है, दयालु राजा दिलीप का जी भर आया और बोले। दीर्घष्वमी नियमिताः परमण्डपेषु निद्रां विहाय वनजाक्ष वनायुदेश्याः। 5/73 हे कमल के समान नेत्र वाले। बड़े-बड़े पट मंडपों से बँधे हुए तुम्हारे वनायु देश के घोड़े नींद छोड़कर। अथ विधिमवसाय्य शास्त्रदृष्टिं दिवसमुखो चितमं चिताक्षिपक्ष्मा। 5/76 सुन्दर पलकों वाले अज ने उठकर शास्त्र से बताई हुई प्रातः काल की सब उचित क्रियाएँ की। इतश्चकोराक्षि विलोकयेति पूर्वानुशिष्यं निजगाद भोज्याम्। 6/59 तब सुनंदा राजा के पास ले जाकर बोली-अरी चकोर जैसे नेत्र वाली! इधर तो देख। मदिराक्षि मदाननार्पितं मधु पीत्वा रसबत्कथं नु मे। 8/68 हे मद भरे नयनों वाली। तुमने मेरे मुँह से छूटे हुए स्वादिष्ट आसव को पीया है। प्रबुद्ध पुंडरीकाक्षं बालातपनि भांशुकम्। 10/9 खिले हुए कमल जैसी आँखो वाले, प्रातः काल की धूप के समान सुनहले वस्त्र पहने। जुगृह तस्याः पथि लक्ष्मणो यत्सव्येतरेण स्फुरता तदक्ष्णा। 14/49 लक्ष्मण ने सीताजी से मार्ग में कुछ नही बताया, पर सीताजी के दाहिने नेत्र ने फड़ककर। अथ धूमाभ्रिताम्राक्षं वृक्ष शाखावलम्बिनम्। 15/49 उन्होंने देखा कि एक पेड़ की शाखा पर उलटा लटका एक मनुष्य तप कर रहा . है, उसकी आँखें धुआँ लगने से लाल हो गई हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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