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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 159 निदाध 1. ग्रीष्म :-[ग्रसते रसान्-ग्रस्+मनिन्] गरम, उष्ण, गर्मी का मौसम। विहर्तुमिच्छा वनितासखस्य तस्याम्भसि ग्रीष्म सुखे बभूव। 16/54 एक दिन कुश की इच्छा हुई कि गर्मी में सुख देने वाले सरयू के जल में अपनी रानियों के साथ विहार करें। 2. धर्म :-[घरति अङ्गात्-घृ+मक नि० गुणः] ताप, गर्मी, गर्मी की ऋतु, निदाध। निःश्वास हाशिक मा जगाम घर्मः प्रियावेषमिवोपदेष्टम्। 16/43 इतने में ग्रीष्म ऋतु आई, जिसने अपनी उस प्रिया का स्मरण करा दिया, जो साँस से उड़ने वाले महीन कपड़े पहने हुए हो। 3. निदाध :-[नितरां दध्यते अत्र-नि+दह+घङ] ताप, गर्मी, धूम, ग्रीष्म ऋतु। अभिपेदे निदाधार्ता व्यालीव मलय दुमम्। 12/32 जैसे धूप से घबराकर कोई नागिन चंदन के पेड़ के पास पहुंच गई हो। संबजता कामिजनेषु दोषाः सर्वे निदाधावधिना प्रमृष्टाः। 16/52 ग्रीष्म ऋतु ने कामी पुरुषों की सब कमी पूरी कर दी। निद्रा 1. निद्रा :-[निन्द्र क+टाप, नलोपः] सुप्तावस्था , नींद। शय्यां जहत्युभय पक्ष विनीत निद्राः स्तम्बरमा मुखरशृंखलकर्षिणस्ते। 5/72 तुम्हारी सेना के हाथी, दोनों ओर करवटें बदलकर खनखनाती हुई साँकल को खींचते हुए नींद से उठ खड़े हुए हैं। इति विरचितवाग्भिर्बन्दिपुत्रैः कुमारः सपदि विगत निद्रस्तल्पमुज्झांचकार। 5/75 वैसे ही चारणों की सुरचित वाणी सुनकर राजकुमार अज की नींद खुल गई और वे उठ बैठे। 2. संवेश :-[सम्+विश्+घञ्] निद्रा, विश्राम। अथ प्रदोषे दोषज्ञः संवेशाय विशां पतिम्। 1/93 रात हो चली थी, राजा दिलीप को सोने की आज्ञा दी। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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