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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 154 कालिदास पर्याय कोश 6. स्रोतोवहा :-[स्रुतसि+वहा] नदी। महीधरं मार्गवशादुपेतं स्रोतोवहा सागर गामिनीव। 6/52 जैसे समुद्र की ओर बढ़ती हुई नदी बीच में पड़ते हुए पहाड़ को छोड़ जाती है। नभ 1. अंबर :-[अम्बः शब्दं तं राति धत्ते इति-अम्ब+रा+क] आकाश, वायुमंडल, अंतरिक्ष। रक्षसां बलमपश्यदम्बरे गृधपक्षपवनेरित ध्वजम्। 11/26 आकश की ओर देखा कि गिद्ध के पंख के समान हिलती हुई ध्वजाओं वाली राक्षसों की सेना डटी खड़ी है। अंकुशाकारयाङ्गल्या तावतर्जय दम्बरे। 12/41 नकटी बूची होकर वह आकाश में उड़ी और अंकुश जैसी उँगलियाँ चमका चमकाकर। 2. अभ्र :-[अभ्र+अच् या अप्+भृ अपो बिभर्ति-भ+क] वायुमंडल, आकाश। आलोकयिष्यन्मुदितामयोध्या प्रसादमभ्रंलिहमारुरोह। 14/29 सुन्दर अयोध्या की छटा निहारने के लिए आकाश से बातें करने वाले अपने ऊँचे राजभवन की छत पर जा चढ़े। 3. आकाश :-[आ+का+घञ्] आकाश, आसमान, अन्तरिक्ष । वशिष्ठमंत्रोक्षण जात्प्रभावादुदन्त दाकाश महीधरेषु। 5/27 वशिष्ठजी के मन्त्रों से पवित्र किया हुआ रघु का रथ समुद्र, आकाश और पर्वत कहीं भी आ-जा सकता था। छाया पथेनेव शरत्प्रसन्नमाकाशमाविष्कृत चारुतारम्। 13/2 जैसे सुंदर तारों से भरे हुए शरद् ऋतु के खुले आकश को आकाशगंगा दो भागों में बाँट देती है। आकाश वायुर्दिन यौवनोत्थानाचा मति स्वेदलवान्मुखे ते। 13/20 आकाश का वायु तुम्हारे मुख पर दोपहर की गर्मी से छाई हुई पसीने की बूंदों को पीता चलता है। ख :-[खर्व+ड] आकाश। प्रत्युवजन्तीव खमुत्पतन्त्यो गोदावरी सारस पंक्तयस्त्वाम्। 13/33 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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