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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 145 धनुर्भूत 1. अधिज्यधन्वा :-[अध्यारूढ़ा ज्या यत्र, अधिगतं ज्या वा+धन्वन्] धनुष की डोरी को ताने हुए, धनुर्धर। लताप्रतानोद्ग्रथितैः स केशैरधिज्य धन्वा विचचार दावम्। 2/8 उनकी शिर की लटें जंगल की लताओं के समान उलझ गई थीं, जब वे हाथ में धनुष लेकर जंगल में घूमते थे। 2. आत्तकार्मुक :-धनुर्धर। स्थाणुदग्धवपुषस्तपोवनं प्राप्य दाशरथिरात्तकार्मुकः। 11/13 जिस तपोवन में शिवजी ने कामदेव को भस्म किया था, वहाँ जब सुंदर शरीर वाले राम, धनुष उठाए हुए पहुँचे। 3. चापधर :-[चप्+अण्+धर] धनुर्धर। अकार्य चिन्ता समकालमेव प्रादुर्भव॑श्चाप धरः पुरस्तात्। 6/39 उनके समय में यदि कोई पाप करने का विचार भी करता था, तो वे धनुष बाण लेकर उसके सिर पर जा चढ़ते थे। चापभृत :-[चप्+अण्+भृत] धनुर्धर। ज्याघात रेखे सुभुजो भुजाभ्यां बिभर्ति यश्चापभृतां पुरोगः। 6/55 इनको देखती हो न, कैसी सुंदर इनकी भुजाएं हैं और धनुषधारियों में तो इनसे बढ़कर कोई है ही नहीं। इनकी भुजाओं पर जो दो काली-काली रेखाएँ धनुष की डोरी खींचने से बन गई हैं। बाणाक्षरैरेव परस्परस्य नमिर्जितं चापभृतः शशंसुः। 7/38 धनुषधारी जो बाण चला रहे थे, उन पर खुदे हुए अक्षरों से ही उनके नामों का ज्ञान हो जाता था। 5. धनुर्धर :-[धन्+उसि+धरः] धनुर्धर, धनुषधारी। ने केवलं तद्गुरुरेकपार्थिवः क्षितावभूदेक धनुर्धरोऽपि सः। 3/31 उनके पिता केवल चक्रवर्ती राजा ही नहीं थे, वरन् अद्वितीय धनुष चलाने वाले भी थे। नियुज्य तं होमतुरंगरक्षणे धनुर्धरं राजसुतैरनुदुतम्। 3/38 यज्ञ के घोड़े की रक्षा का भार रघु और अन्य धनुर्धर राजकुमारों को सौंपकर। अमोघं संदधे चास्मै धनुष्येक धनुर्धरः। 12/97 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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