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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 120 कालिदास पर्याय कोश संध्याभ्रकपिशस्तस्य विराधोनाम राक्षसः। 12/28 संध्या के बादल के समान लाल रंग वाला विराध राक्षस। संध्योदयः साभ्र इवैष वर्णं पुष्पत्यनेकं सरयूप्रवाहः। 16/58 सरयू की धारा ऐसी रंग-बिरंगी लगने लगी है, जैसे बादलों से भरी संध्या। 5. सायं :-[सो+घञ्] दिन की समाप्ति, संध्या, सांझ। सायं संयमिनस्तस्य महर्षेर्महिषीसखः। 1/48 सांझ होते ही यशस्वी राजा दिलीप अपनी पत्नी के साथ संयमी महर्षि वशिष्ठजी के पास गए। प्रयता प्रातरन्वेतु सायं प्रत्युद्धजेदपि। 1/90 वह नित्य प्रातः काल बड़ी भक्ति से इसकी पूजा किया करें और जब यह सायंकाल को लौटे तो आगवानी करके उसे आश्रम में ले आवें। सायन्तन :-[सायम्+टयुल्, तुट्] सायंकाल। विधेः सायंतनस्यान्ते स ददर्श तपोनिधिम्। 1/56 जब संध्या की सब क्रियाएँ पूरी हो चुकीं, तब उन्होंने उन तपस्वी महामुनि वशिष्ठजी को देखा। दिलीप 1. कौशलेश्वर :- राजा दिलीप का विशेषण, अयोध्यापति। इति स्म पृच्छत्यनुवेलमादृतः पिनासखीरुत्तरकोशलेश्वरः। 3/5 इसलिए राजा दिलीप बार-बार उसके पास रहने वाली सखियों से पूछते रहते थे कि रानी को कौन-कौन सी वस्तुओं की इच्छा होती है। 2. दिलीप :-अंशुमान का राजा, भगीरथ का पिता, रघु का पिता (कालिदास के अनुसार)। दिलीप इति राजेन्दुरिन्दुः क्षीरनिधाविव। 1/2 राजा दिलीप ने वैसे ही जन्म लिया, जैसे क्षीरसागर में चंद्रमा ने जन्म लिया था। तथेति गामुक्तवृते दिलीपः सद्यः प्रतिष्ठम्भ विमुक्त बाहुः। 2/59 यह सुनकर सिंह बोला :-अच्छी बात है, यही सही। तत्काल दिलीप का हाथ खुल गया। दिलीपानन्तरं राज्ये तं निशम्य प्रतिष्ठितम्। 4/2 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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