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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९३ १९३ ९७ विवर्द्धन 22 ५४४ ज्योतिर्विज्ञानशब्दकोषः अकारादिशब्दाः पृष्ठाङ्काः । अकारादिशब्दाः पृष्ठाङ्काः विलसति १९३ |विल्वशाखापूजन २२ विलसन्ति १९३ विवर ९१, १२३ विलसन्तु १९३ विवर्जन विलसेत् १९३ | विवर्जनीय २५४, ९२ विलसेताम् 'विवर्जयतः' १७२ विलसेयु: | विवर्जयति १७२ विलासिनी विवर्जयन्ति १७२ विलिप्ता | विवर्जयेत् १७२ विलिप्तागण विवर्जयेताम् १७२ विलिप्ता | विवर्जयेयुः १७२ विलेशय ५४ विवर्जित २५४, ९० विलोक १४५ विवर्जितव्य २५४, ९२ विलोकन् १४५ विवर्य २५४, ९० विलोकनीय=(विलोकित्वयः) विलोकयत् १४७ विवर्द्धमान 'विलोकयतः' १८८ विवर्द्धिन=(परिवर्द्धित:) विलोकयति १८८ | विवर्द्धितव्य (विवर्द्धनीयः) विलोकयन्ति १८८ | विवर्य (परिवद्ध्यः) विलोकयेत् १८८ विवस्वत् ३२, ३७ विलोकयेताम् १८८ विवस्वत्तनूज विलोकयेयुः १८८ | विवह २४५ विलोकित १४५, १४७ | विवाह १३३, १३६ विलकितघ्य=(विलोकनीयः) विवाहकार्य १३६ निलोक्य १४७, १४८ विवाहयोग १२९ विलोक्यमान १४८ | विवाहाग्निपरिग्रह १३६ विलोचन १२१, १५२ विवाहोत्सव १३६ विलोमजिह्व विविध २५३ विलोय विविष्किर २२२ विलोमन् विलोमरसन २३२ विवेक १२२ विल्वद्रुमगृहा २१७ | विवोढ़ ३५, १३४ २३२ २५२ २४३ | विवीर्य سه For Private and Personal Use Only
SR No.020421
Book TitleJyotirvignan Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurkant Jha
PublisherChaukhambha Krishnadas Academy
Publication Year2009
Total Pages628
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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