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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra छन्द व काव्यशास्त्र : साहित्यिक अलंकार हि. काव्य शास्त्र 11 काव्यालंकार - शास्त्र सं. 31 " 17 11 19 " काव्य-लक्षण काव्य शास्त्र छंद शास्त्र अलंकार शास्त्र "1 "1 "1 31 "" " 33 6 " 93 "1 77 19 "3 11 17 रा. प्रा. प्रा.सं. सं. "1 रा. "1 11 " 7 "1 "1 "1 60 90 100 53 12 77 43 32 237 16 5 10 गु. 8 4 7 6 6 6 8 गु. 21 9 5 35 8 A www.kobatirth.org 21 × 17 × 19 × 25 संपूर्ण 17 प्रस्ताव 14 × 20 × 17 × 15 प्रपूर्ण 13 प्रस्ताव 26 × 11 × 16 × 42 संपूर्ण 10 उल्लास 26 × 11 x 15 x 55 26 × 12 × 17 × 53 28 × 13 × 14 × 49 26 × 11 × 14 × 45 26 x 12 x 13 x 35 33 x 16 x 16 × 48 26 × 1 1 × 17 × 54 अपूर्ण 4 उल्लास 27 x 12 x 15 x 49 23 x 11 × 15 × 50 27 × 13 × 14 × 55 15 x 13 x 9 x 19 " 25 x 13 x 10 x 30 37 " साढ़े छ उल्लास तक संपूर्ण अपूर्ण - त्रुटक संपूर्ण 26 × 11 × 13 × 42 17 × 12 × 10 × 2 2 25 x 11 x 15 × 34 25 x 13 x 9 x 33 27 × 1 1 × 15 x 54 27 × 11 × 17 × 60 संपूर्ण 6 अध्याय की ग्रंथाग्र 340 11 20 श्लोक अपूर्ण बीच के पन्न े 2 से 11 संपूर्ण लगभग 48 गीत 76 गा. 75 गा. 5 प्रभायें 11 9 11 11 " 23 x 13 × 13 x 35 25 × 11 × 11 × 36 29 × 14 × 10 × 28 संपूर्ण अपूर्ण संपूर्ण 273 छंद 121 छंद 273 पद "1 10 उल्लास के / ग्रं. 3244 27 2130 ग्रंथाग्र 1870 कृष्णगढ 19वीं 60 पद For Private and Personal Use Only 1767 19वीं 15वीं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1540 11 17वीं 19वीं 18वीं 19at " 10 1800 20वीं 19वीं 11 16वीं 19वीं 18वीं 1834 19at 11 [ 451 11 प्रतिम 3 पन्न श्रौषध मंत्र के 33 मूल की व्याख्या मूल की व्याख्या बीच में प्राधे पन कम हैं मूल की व्याख्या नामादिका पता नहीं पड़ता है प्राचीन प्राकृत या सं. में किसी मूल ग्रंथ की अवचूरि है । बीच में पन्न कट्ट हुए हैं ।
SR No.020414
Book TitleJodhpur Hastlikhit Granthoka Suchipatra Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSeva Mandir Ravti
PublisherSeva Mandir Ravti
Publication Year1988
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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