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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ३ ] ( जीवा ) जीव, ( मुत्ता ) मुक्त, (य) और (संसारिणो) संसारी हैं (तस) त्रस जीव (य) और (थावरा) स्थावर जीव (संसारी) संसारी हैं (पुढवी जल जलण वाऊ वणस्सई) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिको (थावरा) स्थावर (नेया) जानना ॥२॥ भावार्थ-जीवके दो भेद हैं मुक्त और संसारी संसारी जीव के दो भेद हैं:-त्रस और स्थावर। स्थावर जीव के पांच भेद हैं:-पृथ्वीकाय, जलकाय-अपकाय अग्निकाय, तेजःकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय। प्र०-जीव किसको कहते हैं ? 3०-जो प्राणोंको धारण करे । प्राण दो तरह के हैं भाव प्राण और द्रव्य प्राण चेतनाको भाव-प्राण कहते हैं। पांच इन्द्रियाँ, प्रांख,जोभ,नाक,कान और त्वचा त्रिविध-बल मनोबल, वचनबल और कायवल श्वासच्छास और आयु ये दम द्रव्य प्राण हैं। प्र०-मुक्त किसको कहते हैं ? उ०-जिसका जन्म और मरण न होता हो-जो जीव जन्म-मरण से छूट गया हो। प्र०-संसारी किसको कहते हैं ? उ०-जो जीव जन्म-मरण के चक्कर में फंसा हो। प्र०-त्रस किसको कहते हैं ? For Private And Personal Use Only
SR No.020410
Book TitleJivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Vrajlal Pandit
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1850
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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