SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४९ ] "द्वीन्द्रिय आदि जीवों का आयु प्रमाण ।" वासाणि बारसाऊ, बिइंदियाणं तिइंदियाणं तु । अउणा पन्न दिणाइ, चउरिंदीणं तु छम्मासा|३५| (विइन्दिया) द्वीन्द्रिय जीवों की (उ) श्रायु (बारस) बारह (वासाणि) वर्ष की है, (तिइंदियातु) त्रीन्द्रिय जीवों की तो (उणा पन्न दिलाइ ) उनंचास दिन की आयु होती है (चउरिंदीपं तु) और चउरिन्द्रिय जीवों की आयु (मासा) बहः महीने की है ||३५|| भावार्थ- द्वीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट आयु बारह वर्ष की, श्रीन्द्रियों की उनंचास दिन की और चतुरिन्द्रियकी छह महीने की है. यह सबकी उत्कृष्ट आयु है, जघन्य आय अन्तर्मुहूर्त की समझना चाहिये. "चार प्रकार के पञ्चेन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट आयु तीन गाथाओं से कहते है . " । सुर-नेरइयाण ठिई, उक्कोसा सागराणि तित्तीसं । चउपय- तिरिय-मणुस्सा, तिन्निय पलिवोवमा हुति (सुर-नेरइयाण) देव और नारक जीवों की (उक्कोसा) उत्कृष्ट - अधिक से अधिक (ठिई) स्थितिआयु (सागराणि तित्तीसं) तेतीस सागरोपम है. ( चउपय- तिरिय ) चार पैर वाले तिर्यञ्च और ( मणुस्सा) मनुष्यों की आयु (तिन्निय) तीन (पलिमा) पल्पोपम (हुति) है ||३६|| For Private And Personal Use Only A
SR No.020410
Book TitleJivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Vrajlal Pandit
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1850
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy