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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ३७ ] (गम्भया) गर्भज, (मच्छा) मत्स्य-मछलियां, (य) (उरगा) सांप श्रादि,अधिक से अधिक, (जोय. सहस्समाया) हजार योजन प्रमाण वाले (हुति) होते हैं. (पक्खिसु) पक्षियों में शरीर प्रमाण (धणुअपहुंत) धनुष-पृथक्त्व है तथा (भुयचारी) भुजचारी-भुजाओं से चलने वाले (गाउअपहत्तं) गव्यूत-पृथक्त्व प्रमाण शरीर के होते हैं ॥३०॥ (समुच्छिमा) सम्मूच्छिम (खयरा) खेचर जीव (भुयगा) और भुजाओं से चलने वाले जीव (धणुअपुहत) धनुष-पृथक्त्व-प्रमाण वाले होते हैं (य) और (उरगा) सांप आदि (जोयण पुहत्तं) योजन पृथक्त्व शरीर-प्रमाण के होते हैं. (चउप्पया) चतुपद जीव (गाउपुहुत्तमित्ता)गव्यूत-पृथक्त्वमात्र (भणिया) कहे गये हैं ॥३१॥ ___ भावार्थ-गर्भज मत्स्य और सर्प का शरीर-मान एक हजार योजन का है। इस प्रकार के मत्स्य स्वय. म्भूरमण समुद्र में होते हैं तथा सर्प मनुष्य-क्षेत्र से बाहर होते हैं. गर्भज पक्षियों का शरीर-मान धनुष-पृथक्त्व है अर्थात् दो धनुष से लेकर नव धनुष तक है. गर्भज न्योला,गोह आदि भुजपरिसर्प जीवों का शरीर-मान,गव्यूत-पृथक्त्व है अर्थात् दो कोस से लेकर नव कोस तक है। For Private And Personal Use Only
SR No.020410
Book TitleJivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Vrajlal Pandit
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1850
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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