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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ३५ ] बेइंदिय तेइंदिय, चउरिदिय देहमुच्चत्तं ॥२८॥ (वेइंदिय) द्वीन्द्रिय, (तेइंदिय) त्रीन्द्रिय और (चउरिदिय) चतुरिन्द्रिय जीवों के, (देहमुञ्चत्तं) शरीरका प्रमाण, (अणुकमसो) क्रमसे (बारसजोयण) बारह योजन, (तिन्नेव गाउपा) तीन गव्यूत-तीन कोस-और (जोय) एक योजन है ॥२८॥ __भावार्थ-दीन्द्रिय जातिकेजीवों का शरीर-प्रमाण, अधिक से अधिक, बारह योजन हो सकता है, इससे अधिक नहीं। इसका मतलब किसी द्वीन्द्रिय जातिसे है,कुल द्वीन्द्रियों से नहीं; ऐसाहीत्रीन्द्रिय जीवों का शरीर-प्रमाण तीन कोस और चतुरिन्द्रिय जीवों शरीर-प्रमाण एक योजन है। प्र०-योजन किसे कहते हैं ? उ०-चार कोस का एक योजन होता है। प्र०-गव्यूत किसे कहते हैं ? उ.-एक कोस को। "अब नारक जीवों का शरीर-प्रमाण कहते हैं" धणुसयपंचपमाणा,नेरइया सत्तमाइपुढवीए । तत्तो अद्धभृणा, नेया रयणप्पहा जाव ॥२६॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020410
Book TitleJivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Vrajlal Pandit
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1850
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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