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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १७ ] " "अब दो गाथाओं से त्रीन्द्रिय जीव के भेद कहते हैं" गोमी - मंकण - जूआ, पिपीलि- उद्देहिया य मक्कोडा | इल्लिय- घयभिल्लीओ, सावय- गोकीड जाइओ ॥ १६ ॥ गद्दहय- चोरकीडा, गोमय कीडा य धन्नकीडा य । कुंथु गुवालिय-इलिया, तेंइदिय इदगावाई ॥१७॥ (गोमी) गुल्मि - कानखजूरा, (मंकल) मत्कुणखटमल, (जुआ) यूका - जँ, (पिपीलि) पिपीलिकाचींटी, (उद्देहिया) उपदेहिका - दीमक, (मक्कोड़ा) मस्कोटक-मकोड़ा, (इल्लिय) इल्लिका - अल्ली, जो अनाज में पैदा होती है, (घयमिल्लीओ) घृतेलिकाजो घी में पैदा होती है, (सावय) चर्म - यूका- जो शरीर में पैदा होती है, जिससे भविष्य में अनिष्ट की शङ्का की जाती है, (गोकीड जाईओ) गोकीट की जातियां अर्थात् पशुओं के कान आदि अवयवों में पैदा होने वाले जीव ||१६|| ( गद्दहय) गर्भक - गोशाला आदि में पैदा होने वाले सफेद रंगके जीव, (चोर कीडा) चोरकीट - विष्ठा के कीड़े, (गोमय कीडा) गोमयकोट - गोबर के कीड़े, (धन्नकीडा) धान्यकीटअनाज के कीड़े, (कुन्धु) कुन्धु - एक किस्म का कीड़ा, ( गुवालिय) गोपालिका-एक किस्म का अप्रसिद्ध जीव, (इलिया ) ईलिका-जो शक्कर और चावल में पैदा होती है, (इंदगोबाई) इन्द्रगोप जो वर्षा में For Private And Personal Use Only -
SR No.020410
Book TitleJivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Vrajlal Pandit
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1850
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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