SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१५] प्र० - समय किसे कहते हैं ? उ०- उस सूक्ष्म कालको, जिसका कि सर्वज्ञ की दृष्टि में भी विभाग न हो सके । प्र० - मुहूर्त किसे कहते हैं ? n उ०-दो घड़ी अर्थात् अड़तालीस मिनिटों का मुहूत होता है । विशेष- प्रत्येक वनस्पतिकाय नियमसे वादर हैं, पाँच स्थावर, सूक्ष्म और वादर दो तरह के हैं, सबको मिलाकर ग्यारह भेद हुये, ये ग्यारह पर्याप्त और अपरूप से दो तरह के हैं, इस तरह स्थावरजीव के बाईस भेद हुये । प्र ० - पर्याप्त जीव किसे कहते हैं ? उ०- जोजीव अपनी पयाप्तियां पूरी कर चुकाहो, उसे प्र० - अपर्याप्त जीव किसे कहते हैं ? उ०- जो जीव अपनी पर्याप्तियां पूरीन कर चुका हो उसे । प्र० -पर्याप्ति किसे कहते हैं ? उ०- जीवकी उस शक्तिको जिसके द्वारा जीव, आहार को ग्रहण कर रस, शरीर और इन्द्रियों को बनाता है तथा योग्य पुद्गलों को ग्रहण कर श्वासोच्छ्वास, भाषा और मनको बनाता है । संख-कबड्डय-गंडुल, जलोयचंदणग-अलस-लहगाई । 1 For Private And Personal Use Only
SR No.020410
Book TitleJivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Vrajlal Pandit
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1850
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy