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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५३ २ प्रश्न-पुरुष तथा स्त्री श्रीजिनप्रतिमाकी अंगपूजा करें परन्तु आशातनादि कारणोंसे कोई पुरुष वा काई स्त्री श्रीजिनप्रतिमाकी अंगपूजा नहिं करें एसा तपगच्छवालोंका मंतव्य वा उपदेशहै या नहिं ? ३ प्रश्न-इसदुषमकालमें तरुणस्त्रीको कभी १० या १५ दिनमें कभी २० दिनेमें और कभी २५ दिनमें इसतरह अनियमसे बेटेम अकस्मात् ऋतुधर्म होता है इससे श्रीजिनप्रतिमाकी अंगपूजाकरनेमें भी अत्यंत महामलिन ऋतुधर्म द्वारा श्रीजिनप्रतिमाकी महाआशातनाहि होति हैं सो नहिं होनेकेलिये कितनेदिन पहिले और कितने दिन पीछे उस तरुणस्त्रीको श्रीजिनप्रतिमाकी अंगपूजानहिंकरना बतलाते हो? ४ प्रश्न-तरुण स्त्रियां जानतीहै, कि हमको पाँचदशदिनपहिले वा पीछे बेटेम अकस्मात् ऋतुधर्महोताहै, और वहअत्यंतभ्रष्टताका भराहुआ होताहै, उससे श्रीजिनप्रतिमाकीमहाआशातना अधिष्ठायकदेवकालोप और दुष्कर्मबंधहोताहै, तो फिर अपने शरीरकी व्यवस्थाजानकर भी श्रीजिनप्रतिमाकी अंगपूजाकरती हुई अत्यंत भ्रष्ट महामलिन ऋतुधर्मसे महाआशातनादि दुष्कर्मबंध क्यों करती हैं? ५ प्रश्न-श्रीसिद्धाचलजीतीर्थपर आशातनारूप लालनने अपनी पूजा करवाई सो यह नहिं होना चाहिये इत्यादि भावसे कितने लोगोंने श्रीसंघको बहुतआग्रहदिखलायातो उसपरमपवित्र श्रीसिद्धाचलजीतीर्थपर श्रीमूलनायकजिनप्रतिमाजीकीचंदन विलेपनादि ३० जिनदत्तसरि For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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