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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४९ घणो आणोरे, जेहनो दोष दीसें निजनयणे, वली कह्यो जिनवयणेरे ॥ छो० १॥ दीठे अंध होय नेत्र रोगी, पंढ होये संभोगीरे, गंधे अन्नादिका कश्मल थाये, पापडी पडी धावलायरे ॥ छो०२॥ बेडी बूडे जेहने संगें, जावारंग उरंगेरे, स्नानजलेवेलवृक्ष सुकाये, फलफूल नविथायेरे,॥छो०३॥एम जाणी वीजे घरे राखो,तेहशुंभाषमभासोरे, वस्तुवानी आभडवानदीजे, दूरथकांज रहीजेरे॥छो०४॥ एमन राखेजेनर निजगोरी, तेहपापरथधोरीरे, प्रेमनरहे जे नारीप्रसारी ते पामेदुःखभारीरे ॥छो०५॥शाकिनी जे कुटुंबने खाये, नरकमांहे तेजायरे, दुःखदेखे ते त्यां अतिघणा, छेदादिकवधवंधतणारे, छो०६॥ सापिणी वाघणी रीछणी सिंहणी, श्यालिणी सुणी होई कागणीरे, अशुद्धयोनिमां पछीदुःखपामे, भवोभवपातकठामेरे॥ छो० ७॥ पुष्पवती विचार नामक पुस्तकमें अंचलगछवालोंकी करी हुई सूतककी सजाय है उसमें भी लिखा है कि-जिनपडिमा अंगपूजासार, नकरे ऋतुवंती जेनार, एमचर्चरी ग्रंथमा हे विचार, ए परमारथ जाणो सार ॥ पुष्पविचार नामकी पुस्तकके पत्र २२ तथा २३ में लिखा है कि-अथरजस्वला (ऋतुवंती) स्त्री अधिकारनी सिद्धान्तोक्त गाथा लिखतें हैं, जापुप्फपवहं जाणीऊण, नहुसंकाकरेइ नियचित्ते, छिव्वइअ भंडगाइ, तथ्थय दोसाबहु हुंति ॥१॥ व्याख्याजे ऋतुधर्मवाली स्त्री जाणी करीने पोताना चित्तने विषे शंकाय नहिं हांडलादिक ठामने आभडे त्यां तेने घणा महोटा दोष लागे ॥१॥ लछीनासइदूरं, रोगायं तह वहंति अणुवरयं, गि For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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