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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४५ नहीं छूती है इसीकारणसे जवानस्त्रियां पूजा नहीं करती हैं याने श्रीजिनप्रतिमा की पूजा करती हुई तरुणस्त्री को अकालवेला ऋतुधर्म रुधिरपात (खूँनका झरना ) होता है उसी लिये तरुण अवस्थावाली स्त्री श्री मूलनायक जिनबिंब ( प्रतिमा ) की अपने हाथसे चंदनादि विलेपनद्वारा केवल अंगपूजा नहीं करें यह श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराजने लिखा है परंतु बाल तथा वृद्ध अवस्थावाली स्त्रियों को श्री जिनप्रतिमा की अंगपूजाका निषेध नहीं लिखा है और तरुणत्रीको भी सर्व प्रकार से श्रीमूलनायक जिनप्रतिमाकी पूजाका निषेध नहीं किया है क्योंकि तरुणस्त्रीको श्रीमूलनायक जिनप्रतिमाकी सुगंधी धूप पूजा १ अक्षत पूजा २ कुसुमप्रकरपूजा ३ दीपक पूजा ४ नैवेद्य पूजा ५ फल पूजा ६ गीत पूजा ७ नाट्यादि पूजा ८ करने के बारेमें उक्तसूरिजीने निषेध नही लिखा है केवल अंग पूजाका निषेध लिखा है सो तो श्रीपूर्वाचार्य महाराजने भी १८ गाथा प्रमाण चैत्यवंदन उसकी टीकामें तरुण स्त्रियोंको श्रीमूलनायक जिनप्रतिमा के चरणआदि अंगको स्पर्शकरना निषेधलिखा क्योंकि इसकालमें श्रीसिद्धाचलजी आदि तीर्थ पर भी श्रीमूलनायक जिनप्रतिमाकी चंदन विलेपनादिसे अंगपूजा करती हुई कई स्त्रियों को अकालवेला अकस्मात् महत्पाप बंधनरूप महामलिन ऋतु धर्म आजाता है । यहवात बहुतलोगों को मालूम है तो उक्त उचित कथन को कौन बुद्धिमान सर्वथा अनुचित कहेगा ? देखिये श्रावक भीमसीमाणकने सर्वलोकोंके हितके लिये छपाकर प्रसिद्धकीहुई " पुष्पवती विचार" नामकी पुस्तकमें लिखा है कि For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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