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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कोडी प्रमुख कहाछे, ते सामान्य आचार्य आश्रिजाणवा, त्यांजवली एम कपुंछे के एमां केटलाक गुरू श्रीतीर्थकर सरखा गुणगणसहित थशे ॥ ४५२ ॥ इति प्रवचनसारोद्धारप्रकरणे गाथार्थः॥ ॥ सर्वमिलि युगप्रधान २००४ छे ते उपरोक्त विधिप्रमाणे युगप्रधानत्रयाणां सप्रश्नोत्तरा समाचारीर्यथा-ननु श्रीजिन वल्लभसूरीणां परमसंविनानां सक्रियापात्राणां का सामाचारी प्रर्वत्तते यदुपरि सर्वोपि श्रीखरतरगछसंघः प्रतिक्रमणादिक्रियां कुर्वाणोस्ति, उच्यते श्रूयतां एषां चखारिंशद् गाथारूपा तेषां सामाचारी, तथाहि-सम्मनमिउं देविंद, विंदवंदिअपयं महावीरं, पडिकमणसमायारिं, भणामि जहसंभरामि अहं ॥ १ ॥ पंच विहायारविसुद्धिहेउमिह साहुसावगोवावि, पडिक्कमणं सह गुरुणा, गुरुविरहे कुणइ इकोवि ॥ २॥ वंदित्तुचेइआई, दाउंचउराइए खमासमणे, भूनिहिअसिरोसयलाइआरमिच्छुक्कडं देई ॥३॥ सामाइअपुव्वमिच्छामि ठाइओकाउसग्गमिच्चाइ, सुत्तं भणिअ पलंबिज भुअकुप्परधरिअपरिहाणो ॥४॥ संजइ १ कविट्ठ २ घण ३ लय ४ लंबुत्तर ५ खलिण ६ सबरि ७ बहु ८ पेहा ९ वारुणि १० भुमुहं ११ गुलि १२ सीस १३ मूअ १४ हय १५ काय १६ निहलु १७ द्धा १८ ॥ ५॥ थंभाइ १९ दोसरहिअं, तो कुणइ दुहूस्सिओतणुस्सग्गं, नामिअहो जाणुहूं, चउरंगुलढविअकडिपट्टो ॥ ६ ॥ तत्थय धरेइ हिअए, जहक्कम दिणकए अईआरे, पारितुनमुकारेण, पढइ चउवीसस्थवदंडं ॥ ७ ॥ संडासगेपमझिअ, उवविसिअ लगाविअबाहुजुओ, मुहर्णतयंचकायं, पेहए पंचवीस इह For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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