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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० प्रधाननुं नाम होय, ते नामनी वीस नोकरवाली गणवीनें, छेले तथा पहिले दिवसे, जुगपरधाननी, पूजारूपानाणेथी करवीनें, साथीया उपर, नीवेद फल तथा श्रीफल, तथा बदामो विगेरे सारसार पदारथ मुंकवाने निरंतर जुगप्रधान आगल धूप तथा दीप करवाने पछी जुगपरधानना आगल निरन्तर साथीयाविगेरे करीने त्रणखमासमण दीजे, जेजे दिवसे जेजे जुगप्रधाननो नाम होय, तेजुग प्रधाननो नाम लेहने वंदणवत्तिआनो पाठकहिजे एक लोगस्सनो काउसग सागरवर गंभीरा सुधीकरवोनें पारीनें थोई कहवीने, त्यारपछी पच्चक्खाण कर, त्यारे पछे ज्ञानपदनी पूजा भणाववीनें ज्ञाननी पूजा छैलेने पहिले दिवसे रूपानाणेथी ते बीजे दिवसे पैसेथी पूजकुंनेंछेले दिवसे गुरुकरवुने, युगप्रधानपदनी पूजा भणाववीनें, वरघोडो बडा आडंबरथी चढाववो, अठाइ महोत्सव करयुं, तथा पूजा परभावना गुरुपदपूजा संघपूजा संघभक्ति श्रीगुरुयात्रा तीर्थयात्रा साहमवत्सल चोरासी तेतीस आशातनारहित विनय बहुमानादि सहिततवत्रिकनी आराधना करवी, महानिर्जरादायक दश प्रकारनी वैयावच करवी, सम्यक्त और श्रावक तथा साधुना व्रत अत्यंत निर्मल शुद्धपालवा, यथाशक्ति दानादिचतुष्क मां प्रवृत्तिकरवी, यथाशक्ति सातक्षेत्रमां धनवावरवो ( खरचवो ) एवीरीते श्रीयुग प्रधान तपनी आराधना करवाथी युगप्रधानपणुं पामे निर्विघ्नपर्णे मोक्षपदपामे सुखे धर्मनीप्राप्ति थाय, परभवे विशेष सुखी होवे || इति श्रीयुगप्रधानपदतपविधिः समाप्तः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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