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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९१ पासआया, गुरूकोंनमस्कारकरके श्रीसोमचंद्रमुनिकों कहने लगा की भोसोमचंद्र तुम आचार्यपदकोंप्राप्तहोवोगे. परंतु तीन मुहूर्त देखनेमें आवेगा, जिसमें पहले मुहूर्तमें मरणान्त कष्टहै, अरु दूसरेमुहूर्तमें गच्छभेद है, इससे तीसरामुहूर्त्तश्रेष्ठहै, तीसरामुहूर्तमें आचार्यपद ग्रहण करना, ऐसाकहकर देव अदृश्य होगया, पीछे कथंचित् भावी प्रबलसे दूसरा महूत्ते में संवत् ११६९ मिति वैशाख वद ६ शनिवारकेदिन संध्यासमयशुभलमे श्रीदेवभद्रसूरिजीने ( श्रीविजयदेवसरिजीयें ) युगप्रधानश्री. जिनवल्लभसूरिजीकेवचनसें, सूरीमंत्रदेके पं० श्रीसोमचंद्रगणिजीकों आचार्यपदमें स्थापनकिये, तब श्रीजिनदत्तसूरिजी ऐसा नाम प्रसिद्धकरा, पीछेविहारकरते दूसरीवक्त चित्रकूटनगरमें गए, उहां श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथके मंदरके स्तंभमेरहिहुई विद्यानायकी पुस्तक विद्याबलसें प्रगटकरके ग्रहणकरी, फेर उजयणीनगरीमें गए, उहां महाकालके मंदरके स्तंभमेंसें विद्याधरगच्छे श्रीवृद्धवादीशिष्य श्रीसिद्धसेनदिवाकर श्रीविक्रमादित्यके गुरुकी विद्याम्नायपुस्तक विद्यावलसें आकर्षणकरके ग्रहणकरी, फेर साढातीनकोडमायावीजकाजापकिया, जापकरता चोसठयोगणी. योंने महाराजकों छलनेकाविचारकिया तब कोइवीरआयके महाराजकों खबर दीनी, के आज व्याख्यानमें ६४ योगणी आवेगी, उक्तंच बावनवीरकियेअपनेवस चोसठजोगणिपायलगाई, डाइणसाइणव्यंतरखेचर भूतस्प्रेतपिशाचपुलाई, बीजत. डक कडक भटक अटक रहे जु खटकनकाई, कहे धर्मसिंह For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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