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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९२ अवसर्पिणीका चोथा आरा (और) उत्सर्पणीका तीसरा आराकी मर्यादा कही || ४ || ( पांचमो ) दुःखमा आरो, इकवीस हजार वर्षप्रमाणें (इसमें ) मनुष्योंको उत्कृष्टो सात हाथप्रमाणें सरीर (और) १३० वर्षप्रमाणें आऊखो होय, (मरके) चारेइ गतिमें जावे (परंतु ) सर्वकर्म खपायके कोई मोक्ष न जावे, (यह ) अवसर्पिणी कालका पांचमा आरा, (और) उत्सर्पिणीका दूसरा आराकी मर्यादा कही ॥ ५ ॥ (छट्टो ) दुखमदुखमा नामें आरो, २१ हज्जार वर्षाप्रमाणें (इसमें ) मनुष्योंको उत्कृष्टो २० वर्षको आयु, ( तथा ) १ हाथको शरीर वैताढ्य पर्वतादिकका विलांमें रहनेवाले होय, धर्मकर्म करके रहित होय, सर्व, मनुष्य, क्रूरकर्मी, न्यायमार्गरहित, मरके प्रायै नरकनिगोदादि दुर्गतिमें जावे, यह, अवसपिंणी कालका छट्टा आरा (और) उत्सर्पिणीका पहेला आराकी मर्यादा कही || ६ || इसतरे अवसर्पणी उत्सर्पिणीका ६ आराकी मर्यादा जैन सिद्धान्तों में कही है, -- प्रश्नः - ६ आरेरूप अवसर्पणी (वा) उत्सर्पणी कालमें, कितने २ परमात्मा ज्ञानगुणयुक्त, जैनधर्म में मुख्य, चतुर्विध संघ स्थापन करनेवाले तीर्थंकर होते हैं, उत्तर- छ आरे रूप एकेक कालमे, २४ चौवीस तीर्थंकर भगवान् होते हैं, प्रश्नः - अभी प्रचलित कौनसा काल तथा कौनसा आरा है, उत्तर - अभी अवसर्पिणी कालका पांचमा आरा है, प्रश्नः - ये अवसर्पणी कालका कौनसा आरातक युगलिया For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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