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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ ॥ध० ॥ निर्धनको लखमी बकसावत, पुत्र विना जाके पुत्र करी रे ॥०॥२॥ जोजो परतिष परचा देख्या, सुनो भविक दिलबीच धरी रे॥ध० ॥ फतेमल्ल भडगतिया श्रावक, पहली संका जोर करीरे ॥ध० ॥३॥ परतिख देखू तब मै जाj, प्रगट्या ततखिण तरण तरीरे ॥ ध० ॥ पुष्पमाल शिर केशरटीको, अधर श्वेत पोशाककरीरे ॥ध० ॥४॥ मांग २ वर बोले वाणी, फरक बतावो गुरु मेघझरीरे ॥ ध० ॥ फरक उगायो दोय लाख पर, तेरी महिमा नित्त हरीरे ॥ध० ॥ ५॥ गैनचंद गोलेछाको तें। परतिख दीना दरस फरीरे ॥ध० ॥ विक्रमपुरमें धुंभ तुहमारा, चित्र करावत सुरसुंदरीरे ॥३०॥६॥ थानमल्ल लूण्यांपर किरपा, लखमी लीला सहजवरीरे । लखमीपति दुगडकी साहिब, हुंडीकी भुगतानकरीरे ॥ ५० ॥७॥ जो उपकार कया तै मेरा, दीनी सनमुख अमृत झरीरे ॥ध० ॥ तेरी कृपासे सिद्धी पाई, जागे जस अरु भाग भरीरे ॥ध०॥ ८॥ भूखा भोजन तिसिया पानी, भरत हाजरी देव परीरे ॥ ध० ॥ विखम बखत पर सहाय हमारे, ऋद्धिसारकी गरज सरीरे ॥ ३० ॥९॥ - श्लोक-मृदुमधुरध्वनिकिङ्किणीनादकै जविचित्रितविस्तृतवासकैः ॥ सकल० शिखरोपरि ध्वजां आरोपयामि स्वाहा ॥ दोहा-भट्टारक पदवी मिली, जीते वादी वृंद । कंठ विराजत सरखती, जगमें श्रीजिनचंद ॥ राग आसावरी-अथवा धनाश्री। पूजन जगसुखकारी सुगुरु तेरी पूजा । तेरे चरणकमल बलिहारी ॥ सु० ॥ साह सलेम दिल्लीको बादस्या, सुनके शोभ तिहा For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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