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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७१ मरिंदकोहंडि रेवईणं च, सवेसि सत्ताणं, पुरिसो अपराजिओ होई ॥ १७ ॥ विजुव पजलंती, सल्वेसुवि अरकरेसु मत्ताओ, पंचनमुकार पए इकिके उवरिमाजाव ॥ १८ ॥ ससिधवलसलिलनिम्मल, आयारसहं च वन्नियं विद्, जोअणसयप्पमाणं, जालासयसहस्सदिप्पंतं ॥ १९ ॥ सोलससु अक्खरेसु, इकिकं अक्खरं जगुजो, भवसयसहस्स महणो, जंमिडिओ पंचनवकारो ॥ २० ॥ जो गुणइ हुइ कमणो, भविओ भावेण पंचनमुक्कारं, सोगच्छइ सिवलोअं, उज्जो अंतो दसदिसाओ ॥ २१ ॥ तवनियमसंयमरहो, पंचनमोक्कारसारहि निउत्तो । नाणतुरंगमजुत्तो, नेइ फुडं परमनिवाणं ॥२२ ॥ सुद्धप्पा सुद्धमणा, पंचसुसमिईसु संजुअतिगुत्ता, जे तम्मि रहे लग्गा, सिग्धं गच्छंति सिवलोअं ॥२३॥ थंभेई जलं जलणं, चिंतिअमित्तो वि पंचनवकारो, अरिमारिचोरराउल, घोरुवसग्गं पणासेइ ॥ २४ ॥ अटेवय अट्ठसयं, अट्ठसहस्सं च (अट्ठलरकंच) अट्ठकोडीओ, रक्खंतु मे सरीरं देवासुरपणमिआ सिद्धा ॥२५॥ णमो अरिहंताणं, तिलोअ पुजोत्र संथुओ भयवं, अमरनररायमहिओ, अणाईनिहणो सिवं दिशउ ॥ २६ ॥ निद्वविअ अट्टकम्मो, सिवसुहभूओ निरंजणो सिद्धो, अमरनररायमहिओ, अणाइनिहणो सिवं दिशउ ॥२७॥ सवे पओस मच्छर, आहिवाहि अ पणासमुवयंति, दुगुणीकय धणुसई सोउंपि महाधणुसहस्सं ॥ २८ ॥ इय तिहुअणप्पमाणं, सोलसपत्तंजलंत दित्तसरं, अट्ठार अद्धवलयं, पंचनमुक्कारचक्कमिणं ॥ २९ ॥ सय. लुजोइअ भुवणं, विद्दावि असेससत्तुसंघायं, नासिअ मिच्छत्ततम, विलियमोहं गयतमोहं ॥३०॥ एयस्स य मझत्थो, सम्म For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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