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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५८ षट्त्रिंशत् गुणराजिते वरपदे स्थाप्यो हि योगीश्वरैः, जीव्याच्छ्रीजिनहंस सूरि सुगुरुर्मान्यः सदा वाग्मिनाम् ।। श्रीजिन सौभाग्यसूरिजीके पाटऊपर ७२ मा श्रीजिन हंससूरिजी भए, तिके कुजटी गामबासीय गोताणी गोत्र, साह मनसुख पिता, जयादेवी माता, संवत् १९०० जन्मः हिंमतराम जन्म नाम, संवत् १९१७ फागुण वदि ५ पंचमी के दिन बीकानेर नगर में दीक्षा लीनी, चोपडा कोठारी, गेवरचंदजीने दीक्षा महोच्छव करा, हितवल्लभदीक्षा नाम भया, संवत् १९१७ फागुण वदि ११ एकादशीके दिन आचार्य पदकों प्राप्त भये, तत्र वच्छावत अमरचन्दजी तथा झालरापाटणनिवासी, छाजेड भूरामलजी, तथा गोलच्छा ग्यानचंदादिकनें बहुत द्रव्य खरच करके, नंदी महोच्छव किया, तथा वीकानेरका महाराज श्रीसिरदारसिंहजीनें गुरुमहाराजका दरशण किया, गजनेरादिकमें गुरूमहाराजकी तथा सर्व साधुमंडलीकी बहुत भक्ति करी, फेर बीकानेरका सत्तावीस गाम नग में, तथा देशणोंक, आगरा मिरजापुर, आदि नगर देशों में विहार करते मुर्शिदाबाद गए, उहां संवत् १९२४ मिति फागुण वद ४ चोथके दिन दूगड प्रतापचंदजीका पुत्र रायबहादुर लक्ष्मीपतिसिंह, धनपतिसिंहका कराया भया, श्री ऋषभ देव १ श्रीवासुपूज्य २ श्री नेमिनाथ ३ श्रीमहावीर ४ ये चार महाराजका चरणपादुका श्री सम्मेतशिखरजी पर्वतके ऊपर जूदा जूदा चार ठिकाणें प्रतिष्ठा करके, स्थापन किये, संवत् १९२६ मिति फागुण सुद ७ सातमके दिन, अजीम गंजका समस्त संघका बनाया हूवा रामबाग में श्री - For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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