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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४९ खामीकी तथा श्रीशत्रुजयप्रमुखकी यात्रा करी, सकल शास्त्रपारंगामी, अनेक वादीयोंकों जीतनेवाले, श्रीगुरूमहाराज तीनदिन अणशण करके आराधना समाधिपूर्वक संवत् १७८०, जेष्ठयदि १० दशमीके दिन युगप्रधानपदभृत् श्रीमजिनसुक्खमूरिजी श्रीरिणीनगरमें स्वर्गकों प्राप्तभए, उसी रात्रिमें देवतावोंने अदृश्य बाजित्रबजाया, उसनगरके राजादिक सर्वलोक वाजिनध्वनि करके आश्वयेवंतभये ॥५५॥ ॥ॐ॥ तत्पद्रोदयशैलभास्करनिभस्तेजस्विनामग्रणीः श्रीमच्छ्रीजिनभक्तिसूरिसुगुरुर्जज्ञे गणाधीश्वरः। तत्पादांबुजसेविनो युगवराः सद्भूतयोगीश्वरा, जाताः श्रीजिनलाभसूरिसुगुरवः प्रज्ञा गुणानुत्तराः॥९॥ : तत्पट्टे ६७ मा श्रीजिनभक्तिसूरिजी भए, तिके इन्द्रपालसरग्राम निवासी सेठगोत्रीय साह हरिचन्द्रपिता, हरिसुखदेवी माता, संवत् १७७०, जेष्ठसुदि २ द्वितीया दिनजन्म, भीमराज मूलनाम, १७७९ माघसुदि ७ सप्तमीकू दीक्षा, भक्तिक्षेम दीक्षानाम, संवत् १७४०, जेष्ठवदि ३ तृतीयादिन, रिणीपुरमें श्रीसंघकृत्महोत्सवसें, आचार्य पदको प्राप्त भए, फेर नाना देशमें विहार करनेवाले, सादडीनामा नगर विषे हस्तिचालनादि प्रकारकरके, प्रतिपक्षीयोंकों जीतके, विजयलक्ष्मीकों धारनेवाले, सर्वसिद्धान्तपारगामी, श्रीसिद्धाचलादि सकलमहातीर्थयात्रा करी, श्रीगूढानगरके विषे श्रीअजितजिनचैत्यप्रतिष्ठाकरी, महातेजस्वी, सकलविद्वजनसिरोमणि, श्रीराजसोम उपाध्याय, श्रीरामविजय उपाध्याय, श्रीक्षमाप्रमोद ३६ दत्तसूरि. For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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