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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० विरुद्ध प्ररूपकनें गच्छबाहिर करवो १२ सूर्यास्तपच्छी जिनमंदिर मां जावो नहिं १३ चतुर्विध श्रीसंघनी सभामा मुख्यपट्टधराचार्य धर्मदेशना करे १४ सूर्यास्तपच्छी साधुने उपासरेमा स्वीयें प्रवेशकखो नहिं १५ सूर्यास्त पच्छी साधवीने उपासरेमां पुरुषे प्रवेशकरवो नहिं १६ वधारे गृहस्थनो परिचय करवो नहिं १७ मिथ्यादृष्टिगृहस्थ संन्यासी पार्श्वस्थादिकथी परिचय करवो नहिं १८ पचाश दिवसे संवत्सरी प्रतिक्रमण करवो १९ श्रीवीरनो गर्भापहार कल्याणकरूप मानवो २० अछेरो कल्याणकरूप न होवे एम कहेवो नहिं २१ आवश्यकमते सामायिकउचखां पछी इरियावही कही छे ते मानवी सही छे २२ पर पक्षीने माडं लागे एवो वचन बोलबो नहिं २३ पर पक्षी पर पक्षना स्तवनस्तुत्यादिक कहे तो ना कहेवी नहिं २४ आगमाचरणाविरुद्ध प्ररूपणा करवी नहिं २५ चउरासीगछमां आगमाचरणा अनुसार प्ररूपणानो निषेध करवो नहिं २६ तपाखरतरना प्ररूपणामां सिद्धान्ताधारे भेद कहेवो नहिं मानवो नहिं २७ आगम, सर्व आचरणा, देश आचरणा, अविछिन्न संप्रदाय, अविछिन्न संप्रदायसें आगतसकलसिद्धान्त पंचांगी सहित सर्व गछवासी प्रमाण करहै तेहने विसंवादी कहेवा नहिं २८ गछनी गुरुनी सिद्धान्त सम्मत मर्यादा भंग करवी नहिं २९ उत्सूत्रकंदकुद्दालादिक जलसरण कियाहै अप्रमाणभूत अर्थ जे कोइ पोताना रचेला ग्रन्थमां लावस्से तेहने गछनायक मोटो ठबको आपसे ते ग्रन्थ अप्रमाणभूत मानवामां आवसे, गीतार्थ गछ नायकने शोधवाथी पछी गछमां ते ग्रन्थनी भणवा भणावानी प्रवृत्ति करवी ३० संविग्न भव For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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