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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra For Private And Personal Use Only चित्र परिचय. जंगम युगप्रधान भट्टारक अंजिनचंद्रसूरीश्वरजी शिप्योसहित अकबर के निमंत्रण को बीकार कर संवत् १६.१ में लाहोर पधारे. मिलनका दृश्य अपूर्व और चमक रिक घटनाओंसे पूर्ण था. १) गुरुमहाराज शाही दरबार में प्रवेश करत है. बादशाह स्वागतार्थ सन्मुख आता है और बधाकर स्वागत ) पूर्वक निश्चयानुसार बैठन की प्रार्थना करता है. किन्तु गुरुमहाराज कहते है यहांपर जीव हैं इसलिये बैठना नियम विरुद्ध है. बादशाहने कहा कितने जाव है. गुरुमहाराजने कहा : जाव है. काजी प्रसन्न हो गुहाने से जीव निकालता है किंतु तीनही निकलते हैं. कारण सगर्भा बकरी श्री. अतः भूमिके संसर्ग से दो बच्चे होगये थे. (२) काजीने ईर्षा से गुरुमहाराज का मानभंग करने के लिये मंत्रबल से अपनी टोपी आकाश में उड़ाई. गुरुमहाराजने रजाहरणगे नाड़ित कराते हुवे पुन: काजी के सिरपर रखादी. यह चमत्कारिक दृश्य देख अकबर मंत्रमुग्धसा होगया. (३) आहार के लिये परिभ्रमण करते हुवे गुरुमहाराज के एक शिष्य की एक गृहस्थ के यहां राज्यकर्मचारी मुल्लाजी मौलवी से भेट हो गई. उसके तिथि पूछनेपर अमावस्या थी किन्तु मतिभ्रम के कारण पूर्णिमा कह दी. पश्चात आके गुरुमहाराज से साद्योपांत ह ल कहा. गुरुमहाराजने एक गृहस्थ से स्वर्णथाल मंगवाया और मंत्रितकर आकाश में उड़ा दिया. चन्द्रवत् प्रकाश देख बादशाहने बारा बारा कोसतक सवार दोडाये किन्तु सर्वत्र प्रकाश ही प्रकाश देख बादशाह को खबर दी. सुनकर बादशाह अत्यंत प्रसन्न हुवा और गुरुमहाराजपर विशेष श्रद्धाभक्ति रखने लगा. www.kobatirth.org Anh Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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