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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०७ हजारों बनेहुवे मौजूद है, जिसमें भी उत्पत्ति सासनसेवा चमत्कार वगेरा स्वरूपगर्भित बहुत बडेबडे स्तवनादिक मौजूद है, परंतु saiपर ग्रन्थकी गौरवताके भयसें नहिं दिये गये हैं और श्रीजिनदत्तसूरिजीका श्रीजिनचन्द्रसूरिका श्रीजिनकुशलसूरिजीका भवचबोधक यह बीजाक्षर संप्रदायसें उपलब्ध हुवे हैं तथाहि - ह स म जूस म स ममसि ॥ एयाई जिणदत्तस्स ह म स मसि ॥ एयाई जिणचंद्रस, क म जूस म उ ना म सि एयाई जिणकुसलस्स" इण अक्षरोंकी विस्तारपूर्वक भावना महान् विद्वान् सत्संप्रदायिगीतार्थी के आधीन है, इसलिये मेने अपनी मन्दबुद्धि अनुसार afi aaa और दादासाहिबकी चरणस्थापना जैनसमाज और हिंदूवोंकी वसतीमें होवे इसमें क्या आश्चर्य है, परंतु गांजीखां कमालखांकाडेरा है, वहां पर जैनसमाज और हिंदुवोंकी बहोत कम वसती है, मुसलमीनोंकी जादा वसती है, तथापि मानतें पूजते है, और खूनकरकेभी दादावाडी में यदि कोई इनसान चलाजावे तो, वह मुसलमीनलोक उसका खून माफ करदेतें हैं, इसतरह मुसलमीनलोक जिणोंका सरणा पालते हैं, जैनसमाज और हिंदुमाने पूजेसरणपाले secret आर्य और श्रीजिनदत्तमूरिजी तथा श्रीजिनचंद्रसूरिजी तथा अकबर प्रतिबोधक श्रीजिनचंद्रसूरिजीका चवन गर्भाधानशुभस्वमप्रदर्शन गर्भपोषणादि सर्व अधिकार श्रीजिनकुलशसूरिजी के करीब करीब सदृशहि जाणलेना, और ग्रन्थ बढजानेके भयसें saiपरजादा नहिं लिखा है, और इसके सिवाय जो चरित्राधिकार विशेषतायें होगा, उसीका अनुसरण किया जायगा, वाचकवर्गकों For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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