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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ भया, पीछै संवत १३३१ फागुण वदि ८ अष्टमीके दिन विस्तार करके स्वाति नक्षत्रमें जालोर वसणेवाले मालू गोत्रीय साह खीमसीने २५ हजार रुपया खरचके पाट महोच्छव करा, इसमाफक युगप्रधान पद पालके, श्रीजिनप्रबोधसरिजी निर्मल चारित्र आराधन करके संवत् १३४१ में स्वर्गगए ॥४८॥ तत्पट्टे ४९ मा श्रीजिनचंद्रसूरिजी भए ॥ तिके समियाणा गाममें रहनेवाले छाजेड गोत्रीय मंत्रीदेवराज पिता, कमलादेवी माता, खंभराय मूलनाम संवत् १३२६ मिगशिर सुदि ४ चोथकुं जन्म संवत् १३३४ जालोर नगर विषे दीक्षा संवत् १३४१ वैशाख सुदि ३ तीज सोमवारके दिन मालूगोत्रीय साह खीमसीने १२ बारे हजार रुपया खरचकरके महोच्छव करा इसमाफक गुरुमहाराज अनेक देशोंमें विचरते थके बहोत राजस्थानमें मान्यनीक भए जिसमें मुख्य दिल्लीके बादशाह, तथा चीतोडगढका राजा, जेसलमेरका राजा, मंडोरका राजा, यह मोटे ४ राजा तो महाराजके परमभक्त भए, महाराजके धर्मोपदेशमें अपणें अपणे राज्यादिकमें जीव दयादिक धर्म उन्नती करी, सर्व राजादिक खरतर गच्छकों राजगच्छ कहेनें लगे, बादशाहने जीवदयापाळा तथा तीर्थोका फरमाणभी अपनी अपनी मोहर छापका लिखके दीया, सो आजतक खरतरगच्छके प्राचीन भंडारोंमें है, ऐसे गुरूमहाराज कलिकाल सर्वज्ञ केवली विरुद धारक विख्यात अनेकवादीयांकों जीतनेवाले जिनशासनोन्नतिकरनेवाले श्रीजिनचंद्रसरिजी संवत् १३७६ कुसुमाणग्राममें स्वर्गगए, तिसवखतमें खरतरगच्छकों राजगच्छविरुद मिला, For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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