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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरुषचरित्र परिशिष्टपर्वादिक अनेक ग्रन्थ हैं परन्तु संस्कृतादिक शास्त्रीय भाषा में हैं, समूलवर्त्तमान गुरु अर्थात् आचार्यपर्यन्त एकत्रित लोक भाषा में नहिं है, इसलिये वर्त्तमान सद्गृहस्थादिकों की प्रेरणासें मैंने मेरी अल्पमतिप्रमाणें बहुत प्रयास करके सर्व जैनधर्मानुरागी भव्यप्राणियोंके, अवश्य जाणनें सीखनें करनें लायक जैन ऐतिहासिक युगप्रधान श्रीमज्जिनदत्तसूरिजी चरित्रका दूसरा भाग छपवाके प्रसिद्ध किया है, और सर्व जैनाचारभी यथार्थपणें लोकभाषामें ऐतिहासिक युगप्रधान श्रीमज्जिनदत्तसूरिचरित्रके तीसरे भाग में यदि पाठकगणकी अभिलाषा होगा तो प्रगट करेंगें, यद्यपि इस ऐतिहासिक चरित्रमें श्रीसंघकी तर - फसें हरेक तरह की प्रथम विशेष मदत वा सामग्री मिले विगरहि गुवाज्ञ प्रमाणकर सुरु किया है, इसलिये संभावना है कि कितनेक ठिकाणें सुधारावधाराकी आवश्यकता रह गई है, तथापि सर्व जैन शुद्ध धर्मानुरागियों के अवश्य उपयोगी पुस्तक है, और ऐसा ऐतिहासिक चरित्र नहिं हैं और न देखा गया है, और बहुत परिश्रम के साथ परउपकारार्थ अनेक ग्रन्थोंसें खंडशः खंडशः कृत्वा उद्धृत्य, उद्धार करके यह ऐतिहासिक चरित्र लिखा है, इसलिये मेरेंकों आशा है, कि गुणग्राही धर्मप्रभावक पुरुष एकदफे आद्योपान्त अवश्य इस चरित्र पुस्तककों लेकर अपने पास रखेंगें और ज्ञानवृद्धि खाते पांचपचवीस पुस्तक लेकर और सर्व ठिकाणें अपना धर्म इतिहासरूप चरित्रकों देकर प्रवर्त्तन करके मेरा परिश्रम सफल करेगें, इत्यलं विस्तरेण, नमोस्तु वर्धमानाय गुरुदीपक गुरुदेवता, गुरुविनघोर अंधार, जे गुरुवाणी वेगला, रडबडी या संसार, समाप्ता इयं प्रस्तावना श्रीगुरुप्रसादात् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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