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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ राजकी देशना प्रतिको होनेपर वाय अगले सर्गमें सुविहितानुष्ठानचर्यावरः श्रीमजिनकपाचन्द्रमूरिः सुगुरुीमान् सदानन्दतु ॥ ९॥ ऊपरोक्त श्लोकोंके नाम क्रमके अनुसार ही मणियाला श्रीजिनचन्द्रमूरिजी आदि युगप्रधान शासन प्रभावक महाप्रभावशाली आचार्य महाराजोंका संक्षिप्त किंचित् चरित्र इस सप्तमसर्गमें कहेनेमे आवे है, और ६ सर्गके अंतमे क्रमप्राप्त युगप्रधान श्रीमजिनदत्तसूरीश्वर महाराजकी देशना प्रतिबोध गोत्र स्थापनादि विषय अगले सर्गमें कहनेमे आवेगा, ऐसी सूचना करी होनेपर और क्रमप्राप्त इसी विषयका अवसर होनेपर भी ग्रन्थ गौरवादि भयसें इस विषयकों पृथक् हि लिखना उचित मानकर इहांपर नहिं लिखा है, और अलगहि यथा अवसर लिखेगें, और गोत्रस्थापनादि विषयकों शीघ्रतासे हि देखने की उत्कंठा होय तो श्री जैनसंप्रदाय शिक्षा अथवा महाजनवंश मुक्तावली आदि ग्रन्थ छपे हुवे तइयार हैं, उनकों आद्योपान्त सम्यक्तया मननचिंतन पूर्वकहि पढकर देखो जिस्से अछीतरे गोत्रोत्पत्ति वगेरा स्वरूप मालूम होसकेगा और सर्वखसिद्धान्त परसिद्धान्त पारंगामी सच्चारित्र चूडामणिः मूलोत्तरगुण अप्रतिपाति आसन्न सिद्धिसुख एकावतारी कृतशासनसेवा शासनशृंगारहारशासन शोभाकारक, चतुरविधसंघवृद्धिकारक, श्रीवीरशासन श्रीसुधर्मास्वाम्यादि पदपरम्परा अलंकृत करणेवाले, श्रीतीर्थकरकल्प अखंडित सदेव मनुष्योंमें आज्ञा प्रवर्त्तानेवाले, अंबाप्रदत्त युगप्रधानपदधारक, एकलाखतीसहजार घरकुंटुंब प्रतिबोधक जंगम युगप्रधान भट्टारक चतुरविध श्रीसंघनायक ज्येष्ठ दादासाहेब श्रीमजिनदत्तमरिजी महाराज साहेब जबकी श्रीमजिन For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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