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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh ४८० एकलाख तीसहजार घर कुटंब राजपूतवगैरेको महाजन बनानेवाले, दादागुरुदेव श्रीजिनदत्तसूरिः, हजारों घर महाजन बनाने वाले, मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरिः, ५० हजार श्रावकबनानेवाले श्रीजिनकुशलसूरिः १२०० साधुवोंके परिवारसें विचरनेवाले, इत्यादि फिर गुजरात देशमें लाखों घर जैनधर्मो श्रावक बनानेवाले, हेमचंद्रसूरिः, नागेन्द्र पूर्णतलगच्छीय श्रीहेमाचार्य, और छुटकर गोत्रकई २ औरभी अल्पसंख्यासें और आचार्यों ने बनायेहैं, इत्यादि विशेषस्वरूप यथा अवसरमें लिखेंगें, और पूर्वोक्त श्वेताम्बर जैन जातियों के प्रथमव्यवस्थापक श्रीगौतमस्वामी ततः चतुरदशपूर्वधराचार्य श्रीरत्नप्रभसूरिः ततः दशपूर्वधराचार्य सिद्धसेनाचार्य मानतुंगाचार्य हरिभद्राचार्य वगेरे भये इनोनें प्रथम जिनवचन समर्थन करनेके लिये जैन श्वेताम्बरकोंमकोंस्थापी वाद श्रीखरतराचार्यों ने तथा अन्यगच्छीय आचार्योंने वृद्धिकरी जिसमें विशेष जैनश्वेताम्बरकोमके संरक्षक तथा विशेषतर वृद्धिकरनेवाले युगप्रधानपदवीभूषित श्रीजिनवल्लभमरिजी श्रीजिनदत्तमूरिजी भये अनेक राजा महाराजा मंत्री महामंत्री बडेबडे राजपूतोंको प्रतिबोधदेकर श्वेताम्बर जैनकौमकी विशेष वृद्धि करनेवाले होते भये और एकंदर जैनकोमका संरक्षण तथा विशेषद्धिका कारण जादेतर खरतर आचार्योंसें भया है यह स्वरूप यथा अवसरमे लिखेगें और इन उपरोक्त महाभाग्यशाली महान् पुरुषका प्रभाव किसीएक भाषाकविने दर्शाया है सो यह है, सदगुरुजीथे सांभलो, श्रीजिनदत्तमरीसहो, सेवकने सांनिधकरो, पूरोमनह जगीसहो ॥१॥ दोलतदोहो दादाजी संप For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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