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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगार विगारतह पगासंति, जहवुड्डाणविमोहो,समुईरइ किंतु तरुणाणं ॥१२१॥ गा०॥ बहुसो उच्छोलिती, मुहनयणे हत्थपायकरकाओ, गिण्हेइ रागमण्डल, सोइंदिअतहयकवटे ॥ १२२ ॥ गा० ॥ जत्थयथेरीतरुणी, थेरीतरुणीअ अंतरेसुअइ, गोअमतंगच्छवरं, वरनाणचरित्तआहारं ॥ १२३ ॥ गा० ॥ धोअंतिकंठिआओ, पोअंती तहय दिति पोत्ताणि, गिहिकज चिंतगाओ, नहु अन्जागोअमाताओ ॥ १२४ ॥ गा० ॥ खरघोडाइहाणे, वयंतितेवावितत्थवचंति, वेसत्थीसंसग्गी, उवस्सयाओसमीवंमि ॥ १२५ ॥ गा०॥ छक्कायमुक्कजोगा, धम्मकहा विगह पेसण गिहीणं, गिहिनिस्सिज्जं वाहिति, संथवं तहकरतीओ ॥१२६॥ गा० ॥ समा सीसपडिच्छीणं, चोअणासु अणालसा, गणिणीगुणसंपन्ना, पसत्थ पुरिसाणुगा ॥१२७॥ अनुष्टप्०॥ संविग्गा भीअपरिसाय, उग्गदंडायकारणे, सज्झायज्झाण जुत्ताय, संग्गहेअ विसारया ॥ १२८ ॥ विषमा० गा० ॥ जत्थुत्तर पडिउत्तर, वडिआ अजाउ साहुणासद्धिं, पलवंति सुरुहावि, गोयमकिंतेणगच्छेण ॥ १२९ ॥ गा०॥ जत्थयगच्छे गोयम, उप्पण्णे कारणंमि अजाओ, गणिणी पिहिठिआओ, भासंती मउअसद्देणं ॥ १३० ॥ गा० ॥ माऊएदुहिआए, सुएहाए अहव भइणिमाईणं, जत्थन अजा अरकइ, गुत्तिविभेअं तयंगच्छं ॥ १३१ ॥ गा० ॥ दसणाइआरकुणई, चरित्तनासं जणेइ मिच्छत्तं, दुण्हविवग्गाणजा, विहारमेअं करेमाणी ॥१३२ ॥ गा० ॥ तम्मूलंसंसारं, जणेइ अजावि गोअमानूणं, तम्हाधम्मुवएसं, मुत्तुं अन्नन भासिज्जा ॥ १३३ ।। गा०॥ मासे मासेउजाअजा, एगसित्थेणपारए, कलहे गिहत्थेभा For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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