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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना. . अहो देवानुप्रियो, अहो सर्वे सद्गृहस्थो, विचारणा चाहिये, कि वर्तमान कालमें इंग्रेजसरकारकी शोभनीक राज्यनीतीसें, और छापेके प्रचारसें, बहुतसें, मतवाले अनेक प्रकारसें, उलटे तथा सुलटे विकल्प करनेवाले विद्यापात्र होते जाते हैं, और अपनी अपनी युक्ति मुजब बुद्धि के फेलावसे, देशका तथा अपनें कुलधर्मका फेर विशेष बुद्धिके दिखलानेकों सर्व मतका इतिहासकिये, और करते हैं, सर्व इसकूलोंमें हिन्दी गुजराति मराटी इंग्रेजी सीखनेवाले, विद्यार्थियोंकों इतिहास अवश्य सिखाते हैं, परन्तु कितनेक ऐसे पंडित हुवे, सो अन्यमतका किंचिस्वरूप जाणके अपनी कुयुक्तियोंसें अन्यमतका खंडन वा अन्यमतका इतिहास प्रगट किये हैं और करते हैं, परन्तु कोई धर्मका असली तत्वसमझेविगर खंडनमंडन करना सो कैसा है कि निरपेक्षविद्वज्जनोंके सन्मुख अपनी मूर्खताका चिन्ह प्रगट करना है, कितनेक इतिहास पुस्तकोंमें जैनधर्मकी उत्पत्ति विषय अनेक अपना अपना झूठा विकल्प करके, जैनोकों स्थापित करतें हैं, (याने जैन धर्मका स्वरूप उत्पत्ति मन्तव्य भेद शाखादिक यथेच्छपणे निरंकुश होके निरूपण कीया है, और करते हैं, १ कोई लिखता है कि बौद्धमत एक जैनधर्मकी शाखा है, २ कोई लिखता है जैनधर्म बौद्धमतकी एक शाखा है, ३ कोई कालमें यह दोनुं मत एक थे, ४ कोई लिखता है कि जैनमत मछंदरनाथके पुत्रोंका चलाया हुवा है, ५ कोई लिखता है कि क्या जानते नहिं हो, विष्णु भगवान् दैत्योंके धर्म भ्रष्ट करनेको अर्हतका अवतार For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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