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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देव लोकसें चवके, मिति ज्येष्ट बदि १४ के दिन, भगवान् उत्पन्न हुवा ( तब ) मातायें, गजादि अग्निशिखा पर्यंत, १४ स्वप्ना प्रगटपणे मुखमें प्रवेश को देखा (पीछे) सर्व दिशा सुभिक्षसमें, मिति फागुन वदि १२ कों, श्रवणनक्षत्रे, जन्म कल्याणक हुवा ( उसी बखत ) ५६ दिशकुमरी मिलके सूतिका महोच्छव किया ( और पीछे ) ६४ इंद्र, मेरु पर्वतपर भगवान्कों ले जायके जन्म महोच्छव किया (तिस पीछे ) विष्णु राजा १० दिवसपर्यंत मोटो जन्म महोच्छव करके, सर्व न्याती गोती प्रजा गणकों, मनसा भोजन करायके, सर्वके सन्मुख श्रेयांस कुमर नाम दिया ॥ नाम स्थापनका यह हेतु हे (कि) विष्णु राजाके महिलमें, देव अधिष्ठित १ सज्याथी । उस देवसय्यापर जो सूवे बेठे, तो अकस्मात् कोई उपद्रव हुवे बिगर रहै नही ( जब) भगवान् विष्णु माताके गभेमें आये ( तब ) माताकों उस देवसय्यापर, सोनेका डोहला उत्पन्न भया ( इस सेती) विष्णु माता जब देवसय्यापर सूती, तब देवता प्रसन्न होके माताकी सेवामें हाजर भया । कोइ तरहका उपद्रव नहिं हो सका (इसवास्ते ) पितायें श्रेयांसकुमर नाम दिया । गेंडेका लंछन युक्त, कंचन वर्ण, शरीर प्रमाण ८० धनुष हुवा। तीन ज्ञान सहित, महा तेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जराथै, विवाह करके, क्रमसें राज्यपद धारन किया। अवसर आये, लोकांतिक देवताके वचनसें । संवत्सर पर्यंत मोटो दान देके, मिति फाल्गुन वदि १३ के दिन, सिंहपुरी नगरीमें, छठ तप करके, तिंदुक वृक्षके नीचे, १००० पुरषोंकेसाथ For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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