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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ शासनदेवी सुतारिका | राजसगण । वानरयोनि । धनराशि | अंतरकाल ९ कोड सागरोपम । सम्यक्त पायेवाद, तीसरेभव में मोक्षगए । इति ५५ बोलगर्भित श्री सुविधिनाथस्वामी अधिकारः ॥ ९ ॥ ॥ अथ १० श्री शीतलनाथ स्वामी अधिकारः ॥ भद्दलपुर नगरीमें, इक्ष्वाकवंशी, दृढरथनामें राजा हुवा ( तिसके ) नंदा नामे पट्टराणी, जिसकी कुखमें, अच्युत नामें देवलोकसें aah मिति वैशाखवदि ६ के दिन उत्पन्न भया ( तब ) मातायें १४ स्वप्ना देखा ( पीछे ) सर्वदिशा सुभिक्षसमें, मिति माघवदि १२ कों, पूर्वाषाढा नक्षत्रे, जन्मकल्याणक हुवा ( तब ) ५६ दिश कुमरी, ६४ इंद्रोंके जन्ममहोच्छव कियेवाद, दृढरथ राजा, १० दिवशका महोच्छव करके, श्री शीतलकुमर नाम दिया | श्री वच्छका लंछनयुक्त, कंचनवर्ण, शरीरप्रमाण ९० धनुष हवा । ३ ज्ञानसहित, महातेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे, विवाह करके, क्रमसें राज्यपदकों धारन किया । अवसर आये लोकांतिक देवताके बचनसें, संवत्सरपर्यंत मोटो दान देके, मिति माघवदि १२ के दिन, भद्दलपुर नगरमें, छठतप करके, प्रियंगु वृक्ष के नीचे १००० पुरुषोंकेसाथ दीक्षा ग्रहण करी ( उसबखत ) चोथो मनपर्यवज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, पुनर्वसु के घरे, परमान्नक्षीरशें हुआ । तीनमाश छद्मस्थपणें विहार करके, फेर भद्दलपुर नगर आए ( वहां ) छठ तप सहित मिति पोषवदि १४ के दिन, लोकालोकप्रकाशक, केवलज्ञान उत्पन्न भया । ( उसबखत ) चतुर्निकाय देवगणका किया हुवा, समवस For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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