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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ लाख ७९ हजार (४७९०००) श्राविका हुई ( इत्यादिक) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेतशिखरजी पर्वतके ऊपर, १००० साधुवोंकेसाथ, १ माशका अणसण ग्रहण कीया । काउसग्ग मुद्रायें, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्मकों खपायकै, मिति भाद्रवा वदि ७ के दिन, दश लाख पूर्वका आउखा पूरण करके, सिद्धिस्थानकों प्राप्त भए ॥ शासनदेव विजय यक्ष । सासनदेवी भृकुटी । देवगण । मृग योनि । वृश्चिक राशि । अंतरकाल ९० कोडी सागरोपम । सम्यक्त पाएवाद, तीसरे भवमें मोक्ष गए ॥ इति ८ मा श्री चंद्राप्रभु स्वामीका अधिकारः । ॥ अथ ९ मा श्री सुविधनाथ स्वामी अधिकारः ॥ काकंदी नगरीमें, इक्ष्वाकवंशी, सुग्रीवनामें राजा हुवा (तिसके) रामा नामें पट्टराणी । जिसकी कूखमें, नवमा आनत नामा देवलोक ऐसें चवके, मिति फागुण वदि ९ के दिन भगवान् उत्पन्न भया । तब मातायें १४ स्वप्ना देखा ( पीछे ) सर्व दिशा सुभिक्षसमें, मिति पोष वद १२, मूलनक्षत्रे जन्मकल्याणक हुवा ( तब ) सुग्रीव राजायें १० दिनपर्यंत जन्म महोच्छव करके, सर्व गोत्रियोंके सन्मुख, सुविधिकुमर नाम स्थापन किया । मगरमच्छका लंछनयुक्त, स्वेतवर्ण, शरीरप्रमाण १०० धनुष हुवा । तीन ज्ञानयुक्त, महातेजस्वी १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे विवाहकरके, क्रमसें राज्यपद धारण किया। अवसरआये। लोकांतिक देवताके वचनसें, संवत्सर पर्यंत मोटो दान देके, मिति पोस वदि For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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