SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४४ साधु मुनिराज भए । ३ लाख ३० हजार (३३००००) फल्गुश्री प्रमुख साधवी हुई ॥२० हजार च्यारसै (२०४००) वैक्रियलन्धि धारक हुवे ॥ ९ हजार च्यारसै (९४००) अवधि ज्ञानी भए । २२ हजार (२२०००) केवल ज्ञानी भए ॥ १२ हजार साढापांचसो (१२५५०) मनपर्याय ज्ञानी भए॥सैंतीससै बीश (३७२०) चवदे पूर्वधारी भए । १२ हजार च्यारसो (१२४००) वादी विरुद धरनेवाले भए । २ लाख ९८ हजार (२९८०००) व्रतधारी श्रावक भए ॥ ५ लाख ४५ हजार (५४५०००) व्रतधारक श्रावकण्यां भई ( इत्यादिक) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेत शिखरपर्वतऊपर १ हजार (१०००) साधुवोंके साथ, १ मासकी संलेखना करके, काउसग्ग मुद्रासें, सर्व कर्म खपायके, मिती चैत्रसुदि ५ पंचमीके दिन, ७२ पूर्वलाखवरणको आउषो पालकें सिद्धिस्थानकों प्राप्त भए ॥ शासनदेव महायक्ष । शासनदेवी अजितबला मानवगण । सर्पयोनि । वृपराशि । भगवान् सम्यक्त पाये वाद तीसरे भवमें मोक्षगए (इस समयमें) दूसरा चक्रवर्ति सगरनामें हुवा ॥ ॥ अब किंचित् सगर चक्रवर्तिका अधिकारः॥ श्री अजितनाथ स्वामीके, पिताका भाई, सुमित्र नामें युवराजा हुवा ॥ जिसके यशोमतीराणीयें । १४ स्वप्ना पूर्वक, सगरनामें पुत्रकों जन्मा ( जब ) भगवान्ने दीक्षा लीवी । (तब ) अपना भाई सगर युवराजाकों राजगद्दीपर स्थापन किया । पीछे नवनिधान (और ) चक्र वगेरे १४ रन प्रगट होनेसें, भरतक्षेत्रका छखंडसा For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy