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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar नामि राजाका घर भरदिया पीछे सर्व इंद्र आठमा नंदीश्वर द्वीप जायके अट्ठाहि उच्छव करके, अपनें २ स्थान गए । (फेर) नामि राजाने दश दिनपर्यंत जन्मके उच्छव किये (उस वखत) युगलिया लोक कुछभी जाणते नहीं थे (इसवास्ते) सोधर्म इन्द्रनें, बहुतसे देवता देव्योकों भगवानकेपास रखदिये (सो) सर्व व्यवहार वताते करते रहे ॥ (पीछे) ११ में दिन, कल्पवृक्षोंका दिया हुवा, नानाप्रकारका भोजन, सर्व युगलियाको जिमायके, नाभि राजायें, रिषभ कुमर नाम स्थापन किया । नाम स्थापनका ये हेतू है (कि) भगवानकी दोनूसाथलोंमें वृषभका लांछन था । (दूसरो) मरुदेवी माताने, चवदै स्वप्नाके प्रथम स्वप्नेंमें, वृषभ देखा था (इससेती) रिषभ कुमर नाम स्थापन किया ।। बाल अवस्थामें श्रीऋषभदेवकों जब भूख लगती थी (तब) अपने हाथका अंगूठा, मुखमे लेके चूसलेते थे । उस अंगुठेमें, इन्द्रनें अमृतसंचार कर दिया था। जब ऋषभदेवजी बडे हुए (तब ) देवता उनकों कल्पवृक्षोंके फलल्याकर देते थे। वे फल खाते थे। जब ऋषभदेव, कुछन्यून एक वर्षके हुए (तब) इन्द्र आया । खाली हाथसें स्वामिके पास न जाना। इस्सें इक्षुदंड हाथमें लेके आया (उसवखत) श्रीऋषभदेव कुमर, नाभि कुलकरकी गोदीमें बैठे थे। तब भगवानकी दृष्टि इक्षुदंडपर पडी । तब इन्द्रनें कहा (कि) हे भगवन् इक्षु भक्षण करोगे (तब) श्रीऋषभदेव कुमरनें हाथ पसार्या । तब इन्द्रने, ऋषभदेव कुमारके, इक्षुकी इच्छा उत्पन्न होणेसें, भगवान्का इक्ष्वाकु कुल स्थापन करा (यांसे इक्ष्वाकु For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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