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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ श्री ४८ ही यह ८ उत्तर रुचकके विषेवसे है,, ४९ चित्रा ५० चित्रनाशा ५१ तेजा ५२ सुदामिनी यह ४ विदिशाके रुचकमेवसे है,, ५३ रूपा ५४ रूपांतिका ५५ सुरूपा ५६ रूपवती यह ४ मध्यरुचकके विषेवसे है,, इयचत्ताकेतां, यह सर्व ४० दिशाकुमारी रुचक नामा पर्वतके ऊपर रहे है,, ओर पहिली १६ दिशा कुमारी मेरुके हेठे-ऊपर अधोलोक और उर्ध्वलोकमे रहे है, उणोकानाम यह है, १ भोगंकराः २ भोगवती ३ सुभोगा ४ भोगमालिनी ५ सुवत्सा ६ वत्समित्रा ७ पुष्पमाला ८ अनंदिता यह ८ अधोलोकवासीनी है, और मेरुपर्वतके पास गजदंता पर्वत है, उणोके नीचे भवनोंमे बसे है। तद् यथा अहोलोगवासिणी, दिसाकुमारी। अट्ठ एएसि, हिट्ठा चिट्ठति, भवणेसु।। . १२८ यह गाथा सुगम है, ९ मेघकरी १० मेघवती ११ मुमेघा १२ मेघमालिनी १३ सुवत्सा १४ वत्समित्रा १५ बलाका १६ वारिषेणा, यह ८ ऊर्ध्वलोकवासीनी है, मेरुपर्वतके ऊपर नंदन नामा वन है, उसमे ८ दिशाकुमारीका कूट है उणोंके ऊपर भवनोंमेवसे है, तद् यथा, नवरं भवण पासायंतरह दिसिकुमरिकुडावि, १२२, अवतरण-जिनभवन और प्रासादके ८ आंतरोंमें ८ दिशाकुमारीका कूट है, सौमनसवनसें नंदनवनमें इतना विशेष है, १२२ यह सर्व ५६ दिक्कुमारी देव्यां आयके, सूतिका जन्मोच्छव किया, पीछे उसीवखत रात्रिकों १ अच्युतेंद्र २ प्राण For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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