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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३८८ स्वखके निजपहोद्वारा प्रतिष्ठाकरणेवालखामीजी प्रमुखजिवनाथखा विचरते श्रीजिनदत्तसरिजी महाराज शिष्यादि परिवारसे परिवृत ज्ञानदिवाकर विचरतेभये मेघवत् उपगारि उपगार करतेहैं इ. त्यादि अनेक आश्चर्यके निधान निरंतर चार प्रकारके देवों करके सर्वदा सेवित चरणकमल जिनोका ऐसे बावन (५२)वीर चोसठ (६४) योगिनी पांचपीर खेत्रपाल मानभद्र वगैरे देवकिंकरवत् सेवाकरतेहैं जिनोकी ऐसे श्रीजिनदत्तसूरीश्वरजी करुणासमुद्र घारापुरि गणपद्रादि स्थानोंमें महावीरस्वामीजी पार्श्वनाथस्वामीजी सांतिनाथस्वामीजी अजितनाथस्वामीजी प्रमुखजिनबिंबोकी और जिनमंदिरोकी प्रतिष्ठाकरणेवाले ऐसे और स्वज्ञानके बलसे देखके निजपट्टोद्धारक रासलश्रावकके पुत्रको प्रव्रज्या देनेवाले वहस्तसे आचार्यपद देके भालस्तलमें मणिधारणेवाले श्रीजिनचंद्रसूरिनाम स्थापित करनेवाले सूर्यवत् प्रतिबोधकियाहै भारतवर्षके भव्य कमलोको जिनोने ऐसे गणधरसार्धशतकादि बहोत शास्त्रोंके करणेवाले युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराजका चरित्र लेशमात्र निरूपण कीया इतिश्रीजिनकीर्तिरत्नसरिशाखायां तत्परंपरायांच श्रीमजिनकृपाचंद्रसूरिशिष्य पं० आनंदमुनि संगृहीत तल्लघुभ्राता उपाध्याय जयसागरगणिना लोकभाषयाऽवतारित जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री जिनदत्तमरिचरिते श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां जन्मदीक्षायुगप्रधानपदस्थापनाद्यधिकारवर्णनोनामपंचमसर्गः समाप्तः॥५॥ इति पूर्वार्द्ध समासम्। For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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