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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ लैनेसे विद्युत पातादिउपद्रव नहीं होगा ६ खरतर श्रावक सिंधु देशमें गया हुआ धनवान होगा ७ और योगिनियां बोली यह सात वचन पालना जिससे हमारादिया हुआवरदान सफल होवे सो कहते हैं सिंधु देश में गए हुए गच्छनायकों को पंचनदी साधना १ आचायोंको निरंतर २००० दोहजार सूरिमंत्रकाजाप करना २ साधुओंको निरंतर २००० दोहजार नौकार गुणना ३ खरतरश्रावकोंको घरमें या उपाश्रय में उभय काल सप्तस्मरण गुणना ४ श्रावकोंको नित्य तीन खीचडीकी नौकर वाली गुणना वहां एक मनकेपर एक नवकार और १ उवसग्ग स्तोत्र गुननेसे खीचडीकी माला कही जावे है ५ तथा खरतर श्रावकों के १ महीने में २ आंबिल करने ६ खरतर साधुओंको शक्तिरहते नित्यएकाशनाकरना ७ और जोगनियोंने कहा दिल्ली १ अजमेर २ भडौच ३ उजैन ४ मुलतान ५ उच्चनगर ६ लाहौर ७ ये सात नगरोंमें परिपूर्णशक्तिरहित खरतरगच्छ नायaar रात्रिमें नहीं रहना ऐसा कहके योगनियों स्वस्थान गई और उज्जैन में वज्र खंभमें श्रीमहाकालके मंदिरसे सिद्धसेनदिवाकरका विद्याम्नाय कापुस्तकग्रहणकिया और मायावीजका ३ || सादातीन करोड़ जाप किया वहांसे विहार करके चित्रकूट चीतोड नगरआए वहां विरोधियोंने अपशकूनकरने के लिए कालास बांध के सामने लाए गीत वादिआदिक बंध हो गए विवाद सहित श्रावकोंने कहा अहो सुंदरनहीं हुआ तब ज्ञानदिवाकर श्रीजिनदत्तसूरिजी महराज बोले अहो क्यों उदास होते हैं जैसे यह काला भुजंगडोरीसे बंधा हुआ है वैसा औरभीविरोधी दुष्टलोग है वहबंधन में पड़ेगा परिणामसे यह शकुन अतीव सुंदर है वाद आगे चलते दुष्टोंने एक For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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