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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघ श्रीजिनवल्लभसूरिकेवचनसे बहुतहोगा चिरकालजीवित होगा तब श्रीदेवभद्राचार्य बोले यही हम विचारते हैं वह लग्नभी दूर नहीं है बाद उसदिन श्रीजिनवल्लभसूरिके पट्टपर विस्तार विधिसे संध्यासमयलग्न में पदस्थापनाकिया अर्थात् पण्डित सोमचन्द्रगणीको आचार्यपद दिया श्रीयुगप्रवर जिनदत्तसूरि, ऐसा नाम किया तदनंतर वादित्रवाजते उपाश्रयआए प्रतिक्रमणके अनन्तर वन्दनादेके श्रीदेवभद्रसूरिनेकहा देशनादेओ तब सिद्धान्तोक्त उदाहरणको अनुसरण करके अमृतश्रावणी गीर्वाण वाणी प्रबन्धकरके अर्थात् प्राकृत संस्कृत भाषासे श्रीजिनदत्तसूरिपूज्योंने ऐसीदेशनाकरीकि जिसको सुनके सब प्रजारंजित भई और लोग कहने लगे सिंहोंके स्थान में सिंहही बैठे हुए शोभे है सोमचन्द्रगणिका शरीर छोटा था और श्यामवरण था उन्होंकों देखके जब पदस्थापनाका निर्णय भया तब लोगोंने विचारा यह क्या बैठेगा गौरवरण विशाललोचन ऐसे गच्छ में बहुत साधु हैं इत्यादि लोगोंकेमनमेंविचारथा सो सब दूर होगया लोग कहने लगे अहो धन्य है यह देवभद्राचार्य जिन्होंने ऐसे रत्नकी परीक्षा करी और हमारे जैसे अल्पबुद्धिवाले आप्तलक्षण क्याजानें वाद में विहार करते हुए और भव्योंको प्रतिबोधते असत्मार्गको दूर करते सद्मार्ग में प्रवृत्ति कराते क्रम से गुर्जरदेशमें पाटणनगर आए संघने महोत्सव के साथ प्रवेशकराया देशना दिया देशना सुनके लोग कहने लगे यह आचार्य क्या आए हैं साक्षात् बृहस्पति आए हैं साक्षात् गणधर के अवतार हैं अन्य दिनमें श्रीदेव भद्राचार्यने For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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