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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३२१ अर्थः-गुरूके आधीन होनेसे पाया है गणिपद जिसने सम्यक जैनधर्मको मानके मदरहित वपरहितकरनेकामनजिन्होंका ऐसे प्रकरण करे ॥ ५४॥ चउदससयपयरणगो, विरुद्धदोस सया हयप्पओसो। हरिभद्दो हरियतमो, हरिव जाओ जुगप्पवरो ॥५५॥ ___ अर्थः—चौदह सै चवालीस (१४४४) प्रकरणके कर्ता ऐसे रोका है दोषोंको जिन्होंने ऐसे अज्ञानरूपअंधकारको दूरकरनेवाले ऐसे युगप्रधान सूर्यके जैसे हरिभद्रसूरिः भए ॥ ५५॥ उदयंमि मिहरि भई, सुदिद्विणो होइ मग्ग दंसणओ। तहहरिभद्दायरिए, भद्दायरियंमि उदयमिए ॥५६॥ अर्थः-सूर्यके उदयहोनेसे मार्गके देखनेसे सुदृष्टिवालोंको भद्र होवे है वैसा कल्याणके आचरणमें सूर्योदयके जैसे हरिभद्राचार्य भए ।। ५६ ॥ जंपइ केई समनामा, भोलिया भोलिंयाइं जपंति । चीयावासि दिक्खिओ, सिक्खिओ यगीयाण तं नमयं ५७ __अर्थः-जिसहरिभद्रसरिको कईक सदृश नामहोनेसे भ्रांतिसे चैत्यवासियोंमेंदीक्षालिया शिक्षाग्रहणकिया उन्होंको नमस्कारकरो ऐसा मिथ्या कहते हैं ॥ ५७ ॥ हयकुसमयभडजिणभडसीसो सेसुव्व धरियतित्थधरो। जुगपवरजिणदत्तपहुत्तमुत्ततत्तत्थरयणसिरो॥५८॥ अर्थः-दूरकियाहै कुत्सितमत भट्ट जिनभट्टकाशिष्य शेषनागके २१ दत्तसूरि० For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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