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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तं जंबुनामनामं, सुहम्मगणहारिणो गुणसमिद्धं । सीसं सुसीसनिलयं, गणहरपयपालयं वंदे ॥ १०॥ अर्थः-जम्बुस्खामी है नाम जिन्होंका ऐसे श्रीसुधर्मास्वामी गणधरके गुणसमृद्ध सुशिष्यस्थान ऐसेशिष्य गणधरपदके पालनेवालोंको नमस्कार करूं हूं ॥१०॥ संपत्तवरविवयं, वयत्थिगिहिजंबुनामवयणाओ। पालिययुगपवरपयं, पभवायरियं सया वंदे ॥११॥ अर्थ:-पाया है प्रधानविवेक जिन्होंने व्रतके अर्थी गृहस्थाश्रममें रहे जम्बुकुमरके वचनसे चारित्र लियाजिन्होंने ऐसे पालनकिया है युगप्रधानपदजिन्होंने ऐसे प्रभवखामी आचार्यको मैं निरंतर नमस्कार करूं हूं ॥ ११ ॥ कट्टमहो परमो यं, तत्तं न मुणिजइत्ति सोऊणं । सजंभवंभवाओ, विरत्तचित्तं नमंसामि ॥ १२॥ अर्थः-अहो यह परमकष्ट है तत्व नहीं जानते हैं ऐसा सुनके शय्यंभवभट्ट संसारसे विरक्त भया है चित्त जिसका ऐसे चारित्र लेके युगप्रधानपद पाया जिन्होंने ऐसे शय्यंभवसरिको मैं नमस्कार करता हूं ॥ १२ ॥ संजणियपणयभदं, जसभई मुणिगणाहिवं सगुणं । संभूयंसुहसंभूई, भायणं सूरि मणुस्सरिमो ॥ १३ ॥ अर्थः-उत्पन्न किया है नमस्कार करनेवालोंको कल्याण जिन्होंने ऐसे मुनिगणके स्वामी गुणसहित यशोभद्रसरि और सुखसम्पदाके भाजन ऐसे संभूतिविजयआचार्यका स्मरण करें ॥ १३ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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